मकड़ाई समाचार जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में पांच साल गुजरने के बावजूद राज्य शासन की ओर से जवाब पेश न किए जाने के रवैये को आड़े हाथों लिया। इसी के साथ राज्य शासन पर जुर्माना (कॉस्ट) लगा दिया। याचिकाकर्ता पंचायत को सभी संबंधित लाभों सहित नौकरी पर बहाल करने के निर्देश भी दे दिए गए। हाई कोर्ट की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने सख्ती बरतते हुए राज्य शासन का जवाब का अधिकार समाप्त कर दिया। यह कदम विगत पांच साल में जवाब के लिए कई अवसर दिए जाने के बावजूद जवाब नदारद होने के कारण उठाया गया। ग्राम पंचायत मे पदस्थ रहे याचिकाकर्ता की ओर से 2015 में यह याचिका दायर की गई।
अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता को अगस्त 2000 में ग्राम पंचायत समन्वयक का प्रभार दिया गया था, जो अप्रैल 2000 तक 2010 तक उसके पास रहा। अप्रैल 2010 को याचिकाकर्ता ने प्रभार लेकर दूसरे को सौंप दिया। इसके बावजूद अक्टूबर 2011 को सीईओ ने ग्राम पंचायत में 2006 से 2009 के बीच हुए अधूरे निर्माण कार्य के लिए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बाद याचिकाकर्ता को ना तो कोई नोटिस दिया गया, न जांच के बारे में बताया गया न ही रिकवरी की कोई सूचना दी गई। बिना सुनवाई का मौका दिए उसे निलंबित कर दिया गया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने संभाग आयुक्त के समक्ष अपील की लेकिन खारिज कर दी गई। इस पर हाईकोर्ट की शरण ली गई। हाईकोर्ट ने अपीलीय अधिकारी को निर्देश दिए कि फिर से याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विचार किया जाए। लेकिन अपीलीय अधिकारी ने यह अभ्यावेदन निरस्त कर दिया। इस पर दोबारा हाई कोर्ट में यह याचिका दायर की गई। 27 नवंबर 2015 को हाईकोर्ट ने इस याचिका पर नोटिस जारी किए। 4 साल तक कोई जवाब न प्रस्तुत किए जाने पर 9 अगस्त 2019 को राज्य सरकार को इसके लिए अंतिम अवसर दिया गया। इसके बाद मामले में कई तारीखें लगी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से जवाब नहीं दिया गया। सरकार के इस रवैए को कोर्ट ने सुस्ती भरा करार देते हुए कहा कि ऐसी दशा में याचिकाकर्ता के दावे को सत्य माना जाना चाहिए। इस मत के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निलंबित किए जाने वह इसके खिलाफ अपील में दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बहाल करने के निर्देश देकर याचिका का निराकरण कर दिया।