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इस महाशक्तिशाली देश के पास नहीं पुलिस के लिए बजट, फेसबुक बना सहारा

लंदनः भारत में अक्सर क्राइम रेट और पुलिसकर्मियों की कमी सवालों के घेरे में रही हैं। हालांकि, भारत के अलावा विकसित देश भी पुलिसकर्मियों की किल्लत की समस्या से अछूते नहीं हैं।  इसमें दुनिया के महाशक्तिशाली देश ब्रिटेन का नाम टॉप लिस्ट में शामिल हैं, जहां बजट की कटौती का ऐसा असर पड़ा है कि आपको पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी तो दिखेगी, लेकिन उसमें बैठने के लिए पुलिस कर्मी नजर नहीं आएंगे। हालात ऐसे हैं कि जनता खुद ही अपनी सुरक्षा के लिए सड़कों पर गश्त करने के लिए मजबूर हो गई हैं और फेसबुक के जरिए क्राइम केस को हल करने के प्रयास कर रही हैं।

एक समय ऐसा था जब ब्रिटिश साम्राज्य का पूरी दुनिया में दबदबा था और आज हालात ऐसे हो गए हैं कि पैसों की किल्लत के कारण ब्रिटेन पुलिस विभाग के बजट में कटौती करने को मजबूर हो गया है। इसके परिणाम काफी भयावाह साबित हो रहे हैं।ब्रिटेन के डरहम प्रांत के हर्टलपूल शहर में तो 90, 000 लोगों की आबादी पर केवल 10 पुलिसकर्मी तैनात हैं। 90, 000 की आबादी वाले हर्टलपूल शहर में आपको सड़कों पर पुलिसकर्मी नहीं बल्कि कोई न कोई स्थानीय नागरिक गश्त करता दिखेगा। ऐसा वे अपने शौक से नहीं बल्कि मजबूर होकर कर रहे हैं, क्योंकि शहर में पुलिस ही न के बराबर है। क्राइम रेट हाई हैं और वर्दीवालों की संख्या शॉर्ट, ऐसे में हर्टलपूल वासियों ने ही क्राइम को सुलझाने का जिम्मा अपने ऊपर उठा लिया है।  पिछले आठ वर्षों में क्लीवलैंड ( इंग्लैंड के उत्तर-पूर्व में एक क्षेत्र) पुलिस के फ्रंटलाइन अधिकारियों की संख्या 500 कम हो गई हैं, क्योंकि बजट नहीं हैं। पुलिस के लोगों के शिकायती कॉल को उठाना बंद कर दिया है।

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इस तरह की स्थिति ब्रिटेन के लगभग हर दूसरे शहर की है। जानकारी के मुताबित, क्लीवलैंड फोर्स को अधिक समृद्ध क्षेत्रों वाले हर्टलपूल, रेडकार, क्लीवलैंड, स्टॉकटन और मिडिल्सब्रा से कम धन मिलता है। इन क्षेत्रों में क्राइम रेट काफी अधिक है।92,000 की आबादी वाले तटीय शहर हर्टलपूल में रात में केवल 10 पुलिसकर्मी ड्यूटी पर होते हैं। पुलिस की गाड़ियां खाली पड़ी रहती हैं, क्योंकि उनमें बैठने के लिए पर्याप्त पुलिस अधिकारी नहीं हैं। उधर, क्लीवलैंड पुलिस ने पैसे बचाने के लिए शहर में हिरासत लेने वाले विंग को बंद करने की घोषणा की। साथ ही अधिकारियों को मजबूर भी किया जा रहा है कि अगर वे किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करते हैं तो उन्हें 15 मील दूर स्थित मिडिल्सब्रा पुलिस स्टेशन तब उसे पैदल लेकर जाना होगा। हाल ही में शनिवार की रात को सभी दस पुलिस अधिकारी अपराधी घटनाओं से निपटाने में व्यस्त थे। जिसका मतलब हुआ कि इमरजेंसी कॉल का जवाब देने के लिए कोई भी पुलिसकर्मी नहीं बचा।
स्थानीय लोग बताते हैं, ‘यहां अपराधी खुश हैं क्योंकि उन्हें पता हैं कि उन तक पहुंचना मुश्किल होगा। छोटे-मोटे क्राइम के लिए मानों पुलिस  अस्तित्वहीन हो चुकी हैं, वहीं लूटपाट जैसी घटनाओं पर पुलिस से कोई उम्मीद नहीं कर सकते क्योंकि उनके हाथ बजट की कटौती से बंधे हुए हैं।’ बताया जा रहा है कि पुलिस फंड की कटौती देश के लिए घातक साबित हो रही है। क्लीवलैंड पुलिस अबतक 12 पुलिस स्टेशनों को बंद कर चुकी हैं। वहां लोग हाथ में प्लेकार्ड लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसमें लिखा है, ‘We need to feel safe’…हम सुरक्षित महसूस करना चाहते हैं। यहां पिछले आठ वर्षों में 500 पुलिसकर्मियों को निकाला जा चुका है, जबकि 1,257 को पुलिसकर्मियों को जबरन नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया गया।पुलिस की घटती संख्या ने अपराधियों की संख्या बढ़ा दी है।  लंदन में 2010 के बाद से चाकू से हमलों की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और यह ऐसी घटनाओं का सबसे उच्चतम स्तर बताया जा रहा है। मार्च 2018 (पिछले 12 महीने) में अंत में अपराध की संख्या 40,147 अपराध थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16 फीसद अधिक है। ये आंकड़ा 2011 के बाद से सबसे ज्यादा है। Knife crime की बढ़ोतरी का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि 2011 के बाद से दर्ज 11 मामलों में से 38 चाकू से किए गए हमले से जुड़े हैं।

भारत में ये है पुलिस की किल्लत का हाल
भारत में एक लाख की आबादी पर केवल 151 पुलिसकर्मी हैं। ये संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित अनुपात से बहुत कम है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने मार्च 2018 में यह आंकड़ा लोकसभा में पेश किया था। संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों के मुताबिक, एक लाख नागरिकों के लिए पुलिस-जनसंख्या अनुपात 222 पुलिसकर्मी होना चाहिए, जबकि भारत में पुलिस अनुसंधान ब्यूरो द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक अनुपात 151 है।