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खंडवा लोकसभा उपचुनाव के लिए सरगर्मी तेज, जानिये इस सीट का हाल

मकड़ाई समाचार खंडवा। खंडवा लोकसभा उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा के साथ ही प्रचार का दौर शुरू हो गया है। चुनाव में फिलहाल राष्ट्रीय या प्रादेशिक मुद्दों की बजाय स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशी चयन में भाजपा और कांग्रेस की रणनीति चर्चा में है। इनमें टिकट मिलने से वंचित प्रमुख दावेदारों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। वैसे इस बार स्थानीय प्रत्याशी की मांग को देखते हुए कांग्रेस ने स्थानीय कार्ड खेला है। इसके तोड़ में भाजपा ने लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं के जातिगत समीकरण और अब तक बुरहानपुर से सर्वाधिक बार सांसद चुने जाने के संयोग को आधार बनाकर पिछड़ा वर्ग से प्रत्याशी उतारा हैं। अब इन दोनों मुद्दों में कौन मतदाताओं को रास आता है यह भविष्य के गर्त है।

खंडवा संसदीय सीट पर अब तक हुए चुनाव और विजयी प्रत्याशियों के इतिहास पर गौर किया जाए तो पूर्व में हुए एक उपचुनाव सहित 17 आम चुनाव में नौ बार कांग्रेस तथा आठ बार भाजपा, सहयोगी भारतीय लोकदल और जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए है। इनमें दिलचस्प बात यह है कि खंडवा लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने का 10 बार मौका बुरहानपुर के प्रत्याशी को मिला है। दो बार लोकसभा से बाहर के प्रत्याशी भी विजयी हुए हैं।

उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। कांग्रेस ने राजपूत समाज से पूर्व विधायक ठाकुर राजनारायण सिंह पुरनी तो भाजपा ने बुरहानपुर के पिछड़ा वर्ग के ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। कांग्रेस में यहां से तीन बार चुनाव लड़ चुके अरुण यादव की जगह ऐनमौके पर बदलाव कर स्थानीय प्रत्याशी को मौका दिया है। सांसद नंदकुमार सिंह चौहान की मौत के बाद उनके बेटे जयवर्धन सिंह की प्रबल दावेदारी को नजर अंदाज कर भाजपा ने प्रत्याशी उतारा है। टिकट वितरण के नवाचार से भीतरघात का अंदेशा बढ़ गया है। इसे रोकने के लिए दोनों ही दलों में मान-मनौव्वल की कोशिशें अंदरूनी तौर पर चल रही हैं।

यह भी जानें

– खंडवा लोकसभा से नौ बार कांग्रेस, आठ बार भाजपा और भारतीय लोकदल व जनता पार्टी जीती है। पहले आम चुनाव में वर्ष 1952 में कांग्रेस के बाबूलाल तिवारी जीते थे। वर्ष 1957 में दूसरे आम चुनाव में भी कांग्रेस के बाबूलाल तिवारी को सफलता मिली थी।

– वर्ष 1962 में तीसरे आम चुनाव में कांग्रेस के महेशदत्त मिश्र जीते। वर्ष 1967 में चौथे चुनाव में कांग्रेस के गंगाचरण दीक्षित विजयी हुए थे। वर्ष 1971 में पांचवें चुनाव में भी कांग्रेस के गंगाचरण दीक्षित को सफलता मिली थी।

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– संसदीय क्षेत्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सांसद वर्ष 1977 के छठे चुनाव में चुना गया था। इस चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के परमानंद गोविंदजीवाला जीते थे। नई दिल्ली में सड़क दुर्घटना में परमानंद गोविंदजीवाला की मृत्यु से वर्ष 1979 में हुए उपचुनाव में यह सीट जनता पार्टी की झोली में चली गई। जनता पार्टी से कुशाभाऊ ठाकरे विजयी हुए थे।

– वर्ष 1980 में सातवे आम चुनाव में यह सीट फिर से कांग्रेस के पास आ गई। ठाकुर शिवकुमारसिंह विजयी हुए थे। वर्ष 1984 के आठवें आम चुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के पास रही और कालीचरण सकरगाए विजयी रहे थे।

– वर्ष 1989 में नवें आम चुनाव में यह सीट भाजपा के कब्जे में चली गई और अमृतलाल तारवाला सांसद बने। वर्ष 1991 में दसवें चुनाव में संसदीय क्षेत्र पर फिर कांग्रेस का कब्जा हो गया और ठाकुर महेंद्रकुमारसिंह सांसद बने।

– वर्ष 1996, 1998, 1999 व 2004 में हुए चुनाव में यह सीट पर भाजपा का कब्जा रहा और चारों बार नंदकुमारसिंह चौहान विजयी हुए थे। वर्ष 2009 में 15वें आमचुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते मे आ गई और अरुण यादव सांसद बने थे। वर्ष 2014 और 2019 में हुए 16 और 17वें आम चुनाव में मोदी लहर के चलते नंदू भैया के जीतने से यह सीट फिर से भाजपा के कब्जे में आ गई।

बाहर से आकर दो प्रत्याशियों ने किया प्रतिनिधित्व

संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के बाबूलाल तिवारी व गंगाचरण दीक्षित दो-दो बार सांसद बने तो भाजपा के नंदकुमारसिंह चौहान को छह बार सांसद बनने का अवसर मिला है। चार जिले में फैले संसदीय क्षेत्र में चुने सांसदों में गंगाचरण दीक्षित, परमानंद गोविंदजीवाला, ठाकुर शिवकुमारसिंह, अमृतलाल तारवाला, ठाकुर महेंद्रकुमार सिंह व नंदकुमारसिंह चौहान बुरहानपुर के थे। अरुण यादव खरगोन के हैं। बाबूलाल तिवारी व कालीचरण सकरगाए खंडवा के निवासी रहे। संसदीय क्षेत्र से बाहर के महेशदत्त मिश्र हरदा तथा कुशाभाऊ ठाकरे भोपाल से आकर चुनाव लड़े और सांसद के रूप में खंडवा का प्रतिनिधित्व किया।