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नारी शक्ति – कल तक जिनके हाथों में थी झाड़ू और मोगरी वह लड़कियाँ अब कर रही बल्लेवाजी, मचा रही धमाल

ग्रामीण क्षेत्रो में घर के काम के साथ लड़कियाँ कर रही है क्रिकेट प्रैक्टिस

मकड़ाई समाचार हंडिया। कानून के तहत पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाता है, लेकिन क्या हमेशा पुरुषों को ही अधिकारों और विशेषाधिकारों के बारे में पता नहीं होता है? स्पोर्ट्स में भी ऐसा ही है। एक महिला की क्षमता उसके लिंग के आधार पर सवाल करते हैं। एक महिला की शारीरिक शक्ति को हमेशा पुरुषों से कमतर माना गया है। हरदा के खेल क्षेत्र में भी लड़कियों की भागीदार बहुत कम है, ख़ासतौर से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में।

इस अंतर और भेदभाव का मूल कारण हमारे परिवारों से शुरू होता है। माता-पिता द्वारा अपनी बालिकाओं को खेलों में भाग लेने की अनिच्छा से शुरू होने वाले लैंगिक भेदभाव की शुरुआत घर से होती है। एक लड़की और एक लड़के के पालन-पोषण में अंतर की एक पंक्ति मौजूद है। हमें सिखाया जाता है कि लड़कियों को मैदान में नहीं खेलना चाहिए; खुले में, लड़कियां नाजुक, कमजोर होती हैं और उन्हें चोट लग सकती है। यही हम सुनते हुए बड़े होते हैं, कि “खेल पुरुष गतिविधि और रुचि का क्षेत्र है।” पर अगर ऐसा होता तो मिताली राज, हरमनप्रीत कौर, स्मृति मंधाना, शेफाली वर्मा, यास्तिका भाटिया जैसी महिलायें क्रिकेट ना खेल रही होती और ना हाई भारतीय महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम होती।

चार साल पहले सिनर्जी संस्थान के प्रयास से हरदा में पहली महिला क्रिकेट की टीम तैयार हुई थी और वह आज राज्य और संभाग स्तर पर खेल रही है। बीते दिनो, सीनियर गर्ल्स इंटर डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट प्रतियोगिता में हरदा और होशंगाबाद के बीच मैच हुवा जिसमें चेंजलूमर हेमा ने कप्तानी भी की। हेमा में आज आत्मविश्वास है परिवार को गर्व भी होता है।

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हरदा में खेल की जगहों की कमी नहीं है। हर गाँव में बच्चों और युवाओं के खेलने के जगह तो है लेकिन लड़कियों के लिए असहजता है। सामाजिक धारणाओं में जकड़े लोगों के लिए मुश्किल होता है है कि वह लड़कियों को मैदान में देख सहज रहे। इस असहजता को दूर करने के लिए पहल करने की ज़रूरत है। एक ऐसी पहल जिस से हरदा के गाँव के, मैदानों में लड़कियाँ खेलती नज़र आए।

सिनर्जी संस्थान के अंतर्गत युवालय कार्यक्रम के युवाओं द्वारा आगामी 11 और 12 फ़रवरी को साल्या खेड़ी में विशाल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया जा रहा है। इस टूर्नामेंट में 15+ टीमें, 160+ लड़कियाँ भागीदारी ले रही है। पिछले हफ़्ते से विभिन्न समुदायों की लड़कियाँ एक साथ प्रैक्टिस कर रही है। खुद के पैसों से बैट लिया कुछ ने और कुछ अपनी शर्मीली सहेली को मना लिया है।

शिगोन से शादीशुदा शीला ने बताया कि पहले हम सिर्फ झाड़ू और मोगरी पकड़ते थे लेकिन क्रिकेट टीम की प्रैक्टिस के लिए खुद के पैसे से गेंद बल्ला बुलाकर गांव में प्रैक्टिस कर रहीं हूँ। जिस दिन मैच होगा उस दिन ग्राउंड में एक ड्रेस अप कर के चलने का सोच ही रोंगटे खड़े हो रहे है।
ढेकी से मधु कहती है कि हम सब दो दिनों से क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए प्रेक्टिस कर रहे हैं जिसके लिए घर के कामों को बाट लिया हैं। बचपन से ही क्रिकेट मैच खेलने का शौक था वो आज क्रिकेट खेलते हुए पूरा हो रहा है। मुझे पता है कि मेरा क्रिकेट में भविष्य तो नहीं है पर आगे भविष्य में लड़कियों क्रिकेट जरूर होगा।

इस पहल का मुख्य उद्देश्य है कि खेल जगत में लड़कियों सी हो रहे भेदभाव काम किया जाए। खेल के प्रति लड़कियों में प्रेम जागृति हो पाए और हरदा में लड़कियों के खेल के लिए सहज और सम्मानीय स्थान का निर्माण हो सके। हरदा में सामाजिक रूप से लड़कियों खेल क्षेत्र में अपनाया जाए और बढ़ावा मिले।