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घिब्ली का चक्कर बाबू भाई – राकेश यादव गोल्डी की कलम से  कट, कॉपी, पेस्ट – असल ज़िंदगी का नया सच

डिजिटल युग में समाज का नया रूप

दीपक जी बताते हैं कि उन्होंने पी जी डी सी ए की पढ़ाई के दौरान “कट, कॉपी, पेस्ट” सीखा था। यह तब सिर्फ कंप्यूटर की दुनिया तक सीमित था, लेकिन आज यह समाज की सच्चाई बन चुका है। लोग अपने असली चेहरे, असली विचार और असली पहचान को हटाकर ट्रेंड्स और फिल्टर्स के पीछे छिपने लगे हैं। सोशल मीडिया पर नए-नए ट्रेंड आते हैं, और पूरा समाज बिना सोचे-समझे बस उनकी नकल करता जाता है—जैसे कोई टेक्स्ट कॉपी-पेस्ट किया जाता हो।

 

घिब्ली इमेज ट्रेंड – कार्टून बनने की होड़  

आजकल सोशल मीडिया पर घिब्ली स्टाइल इमेजेस का क्रेज़ है। लोग अपनी तस्वीरों को ए आई से एडिट कराकर खुद को एक कार्टून कैरेक्टर जैसा बना रहे हैं। पहले लोग रियलिस्टिक पोर्ट्रेट बनवाते थे, अब खुद को एनीमेशन स्टाइल में देखने के लिए बेताब हैं। यह ट्रेंड सिर्फ युवाओं तक सीमित नहीं है—बुजुर्ग, बच्चे, और यहां तक कि पूरी फैमिली अपनी घिब्ली इमेज बनवाकर सोशल मीडिया पर डाल रही है।

कार्टून कहो तो बुरा, लेकिन खुद बनो तो कूल!  

अगर आप किसी इंसान को सीधे कह दें कि वह “कार्टून” लग रहा है, तो वह नाराज़ हो जायेगा, बहस करेगा या यहां तक कि गाली-गलौच पर उतर जायेगा। लेकिन वही इंसान जब खुद अपनी कार्टूनी तस्वीरें बनाकर पोस्ट करता है, तो उसे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती। उल्टा उसे “कूल” और “ट्रेंडी” माना जाता है। यह समाज का एक अजीब विरोधाभास है—जहां असल में कार्टून कहे जाने पर अपमान महसूस होता है, लेकिन सोशल मीडिया के लिए कार्टून बनने में गर्व महसूस होता है।

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 असली और नकली के बीच धुंधली होती सीमाएं

सोशल मीडिया और डिजिटल एडिटिंग ने असली और नकली के बीच की रेखा लगभग मिटा दी है। पहले लोग अपने असली चेहरे को आईने में देखकर संतुष्ट होते थे, अब वे स्क्रीन पर एडिटेड वर्ज़न देखकर खुश होते हैं। यह बदलाव केवल तस्वीरों तक सीमित नहीं है—लोग अपनी असली भावनाओं, विचारों और जीवनशैली को भी “कट, कॉपी, पेस्ट” की तरह बदलने लगे हैं।

 क्या हम वाकई खुद को पहचानते हैं? 

आज का समाज एक ऐसी दुनिया में जी रहा है जहां असली चेहरों को फिल्टर और इफेक्ट्स के नीचे दबा दिया गया है। हम असल में कौन हैं, यह सवाल अब शायद ही किसी को परेशान करता है। दिखावा और ट्रेंड्स के पीछे भागते-भागते हम कहीं अपने ही असली अस्तित्व को भूलते जा रहे हैं। शायद यह वक्त है सोचने का—क्या हम सच में खुद को जान रहे हैं, या सिर्फ एक डिजिटल दुनिया में अपनी पहचान को “कट, कॉपी, पेस्ट” कर रहे हैं?

 

लेखक परिचय – राकेश यादव ‘गोल्डी’  

इस लेख को राकेश यादव ‘गोल्डी’ ने लिखा है, जो सामाजिक बदलाव और समकालीन विषयों पर गंभीर विचार रखते हैं। यह लेख दीपक जी से हुई विस्तृत चर्चा और उनके अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया है। राकेश यादव ‘गोल्डी’ लंबे समय से सामाजिक कार्यों, युवाओं के नेतृत्व, और तकनीक के समाज पर प्रभाव जैसे विषयों पर काम कर रहे हैं। उनकी लेखनी समकालीन मुद्दों को न केवल उजागर करती है, बल्कि उनके गहरे विश्लेषण के माध्यम से पाठकों को नए दृष्टिकोण से सोचने के लिए प्रेरित भी करती है।