“हमारी नेता कअसी हो
सोयाबीन ख जअसी हो !”
दाजी राम राम
आ बदामी बठ, अरु सुना काई चल रयो हरदा म
◆- कईं नि दाजी इस बार अनोखो प्रदर्शन हो रयो, बिना नेतागिरी को
●- बिना नेता को, ज़रा अथर ख बता बदामी
-◆ दाजी सोयाबीन को भाव 6000 करना को लेकर पूरे देश में सोयाबीन ही अपील कर रई, मल्लब सोयाबीन ही नेता है किसान होण की, नेता तो नेता मीडिया प्रवक्ता भी सोयाबीन ही ह
●- या तो गज़ब हो रयो बदामी पेली काव
◆- किसान होन ने फसल को नेता बनाकर मुद्दे को जमीन से जोड़ दियो ह
◆- सरकार को संपट नि पड़ री कि करे तो करे काई। जिधर देखो उधर गांव गांव ज्ञापन मुहिम जारी है ।
– – ● पीला सोना की या गत तो नि होनी चईये दाजी,
◆ किसान को माल, सरकारी रेट में धूल बराबर कीमत, वही माल कॉरपोरेट का होक रेट सोना जसा, या तो अन्याय है ! मल्लब किसान की सोयाबीन किसान कुंटल में बेचे तो ओको भाव अगल, और व्यापारी खरीद के माल को मॉल में तोला म सजाए तो अगल भाव, किसान को माल धूल, व्यापारी को माल 24 कैरेट सोना का जसा , या तो ज्यादती ह किसान संग !
◆ 13 सितंबर को सोयाबीन के नेतृत्व में आक्रोश रैली रखी है हरदे में, देखनो या ह कि कित्ता काई किसान जुटता है। किसान कि एकजुटता कसी काई है !
● सई है बदामी, एकजुटता जुटना स ही मालम पड़ेगी। फिर नेता सोयाबीन है तो किसान होन ख इकट्ठा होने म कईं कांटा गड़े !
– ◆ दाजी अबकी बार 6000 पर को नारो सोयाबीन ने दियो है, ये मुद्दों पाल्टी फाल्टी से ऊपर है तो उम्मीद ह कि सोयाबीन की आवाज़ अबकी संसद तक जायेगी।
● हां बदामी इस बार मुद्दों आरपार को है, सोयाबीन लोकतांत्रिक रूप में फ्रंट पे है! मजेदार बात यह है कि सोएल होन ख सोयाबीन ही जगा रई है। अब समय आ गयो कि मुद्दा और मुर्दा में फर्क समझो जाय ! ढोना ख बजाय हल ढूंढो जाय। मुद्दा ख कांधा पे उठा ख मुर्दा होण ख पिरानी पेली जाय!
◆ देखां दाजी। आगे काई होय !
फिलहाल पेली काव किसान अपनी फसल की भक्ति करता दिख रया ह। सबको खाना के देय है ऐसा म तो केनो ही पडेगो कि जन जन की लाडली सोयाबीन ज़िंदाबाद ! ज़िंदाबाद !!
दाजी – अरे केरे बदामी कां गयो थो ! बाते हरदे की।