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” हरदे की बात, हिरदे की बात” : ■दाजी राम राम  ◆अरे आ बदामी बठ, अरु कसो काई

■दाजी राम राम 

◆अरे आ बदामी बठ, अरु कसो काई

■दाजी, किरसान होण न तो फोड़ मचा दी हरदे म,  लग्घर जाम लगेल रयो, पुरो पिरसाशन सड़क पे आ गयो

◆अब भीड़ तो आएगी ही बदामी, सोयाबीन को बुलावो जो थो

जय बलराम बोल के पल्लर की पल्लर हरदे पोंची

■ दाजी, पुलिस और पिरसासन भीड़ देख के बेहरा गयो थो, माथा प बल पड़ गया था!  कोई के रयो थो के बड़ा साब जम जम के छोटा साब होंन ख के रया था बल लाओ, बल लाओ , अब बल की कमी में एकदम कां से बल लाओ, होय तो लाओ ! साब की मनकी पूरी नि हुई ! 

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◆कुल मिलाको किसान होण ने माहौल बना दियो थो ! मंडी में किरसान होण की बंपर आवक रई। जिला का राजा की आनी घानी भी गंज भीड़ थी !  खुफिया तंत्र फैल थो काई

■ हव दाजी, कोई के की परसासन का खुफिया तंत्र ख भी बाहरी बाधा लग गयी लगे। बैठक म  बाबा को दान मुट्ठी लगेगी।  इनको न भीड़ को अंदाज लग्यो नि कई संपट पड़ी। पिरेस के कंसुरे लिया करे भैया होण। 

◆ सोयाबीन को भाव को तो अबी कई नि हुयो बदामी

■ दाजी, कन कौन जलकुकड़ा न राजधानी का बड़ा साब को एक फरजी पत्र व्हाटसाब पे डाली दियो, घड़ेक बाद सरकारी खंडन भी आ गयो, कारवाई करांगा असी नुज भी चल चुला गई !

◆ केरे  बदामी, सोयाबीन का भाव छे हजार नि होय जबलग किरसान न तो खुद सोयगो न परसासन को सोन देगो, असी बात गांव गांव चल रयी ह।  छकडी टिराली भोपाल ले जाना कि के रया किरसान होण

■ देखो काई होय दाजी, भैया होण बीन बजाता रेगा तो ही सब सोया जगता रेगा अरु तभी ताती होयगी नि तो मुद्दा ख मुर्दा होअन म टेम लगे काई !