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अथर्ववेद और शुक्ल यजुर्वेद में हैं जम्भेश्वर भगवान के अवतार का उल्लेख : डा. गोवर्धनराम शिक्षा शास्त्री

हवन यज्ञ के साथ विश्नोई समाज के पांच दिनी अगहन महोत्सव शुरू, पर्यावरण शुद्धि के लिए छोड़ी आह़ुतियां

हरदा :नीमगांव स्थित श्रीगुरु जम्भेश्वर में बुधवार सुबह हवन यज्ञ के साथ विश्नोई समाज के पांच दिवसीय अगहन महोत्सव की शुरुआत की गई। मंदिर परिसर में बने हवन कुंड में समाज के लोगों और संतों ने आहुतियां दी। भगवान जम्भेश्वर के 120 शब्दों का उच्चारण कर पर्यावरण शुद्धि के लिए हवन किया। इसके बाद दोपहर डेढ़ बजे से आचार्य संत डा. गोवर्धनराम शिक्षा शास्त्री ने जाम्भाणी हरिकथा का वाचन शुरू किया। कथा वाचक डा. गोवर्धनराम महाराज ने सबसे पहले श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा गीत की प्रस्तुति दी। श्रीकृष्ण और श्रीगुरु जम्भेश्वर भगवान का जयकारा लगाया। विश्व कल्याण की कामना करते हुए कथा का वाचन शुरू किया। उन्होंने कहा कि जम्भेश्वर भगवान की कृपा से प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी अगहन उत्सव के उपलक्ष्य में पांच दिवसीय जाम्भाणी हरिकथा यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इसी माध्यम से हम सब को हरिकथा करने का शुभ अवसर मिलने जा रहा है। जब जीव के शुभ कर्मों का प्राकट्य होता है ।

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तब ही जग से मन हटाकर जगदीश्वर से मन लगाने का शुभ अवसर मिलता है। जाम्भाणी परंपरा में हम हरिकथा की चर्चा करते हैं। इस मध्यक्षेत्र में भागवत कथा का बहुत बड़ा प्रचलन है। रामचरितमानस की कथाएं भी होती हैं, लेकिन यहां बैनर पर जो आपने नाम सुना वो है जाम्भाणी हरिकथा। इस शीर्षक से हमारा तात्पर्य क्या है। प्रहलाद पंथी सद्गुरु भगवान जाम्भोजी को साक्षात श्रीहरि भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। अन्य समाज के लोग एक सिद्ध महापुरुष के रूप में मानते हैं। इसलिए वो लोग भी जाम्भोजी महाराज का प्रयोग करते हैं। उन लोगों ने एक मानसकिता या दिमाग में एक कुतर्क बना रखा है।

वो लोग कहते हैं इस धराधाम पर परमात्मा के जितने भी अवतर हुए हैं उन सब अवतराें का उल्लेख 18 पुराणों में से किसी ना किसी पुराण में उल्लेख मिलता है, लेकिन 18 पुराणों में से किसी भी पुराण में भगवान जाम्भोजी के अवतरण का उल्लेख नहीं मिलता। अगर वो विष्णु के अवतार होते तो उनके नाम का उल्लेख होना चाहिए था। लोग जानकारी के अभाव में यह तर्क देते हैं। ऐसा कुतर्क जब भी आपके सामने आए तो उनको अथर्ववेद का उदाहरण दे सकते हैं।अथर्ववेद के दूसरे अध्याय के 31वें कांड के पहले, दूसरे और चौथे मंत्र में तथा शुक्ल यजुर्वेद में जम्भ या मशीश शब्द का उल्लेख किया गया है।