दीपक राठौर की रिपोर्ट। सिराली महेन्द्रगांव. प्राचीन परंपरा को बनाये रखने तथा फसलो की अच्छी पैदावार के उद्देश्य से ग्रामीण अंचल के अन्नदाता आज भी अपने खेतों में मछुन्दरी माता की पूजा करते है ।
कृषक मनमोहन गौर ने बताया कि रबी मौसम में गेंहू और चने की बोवनी होने के उपरान्त किसान एक परिवार की तरह खेतो में एकजुट होकर मछुन्दरी माता की पूजा करते है। गांवो में यह पूजा फसलो की अच्छी पैदावार तथा धरती माँ के प्रति सच्ची भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। पूजा करने के उपरान्त चना तथा गेंहू की गुंगरी बनाकर परंपरा अनुसार उसमे गुड़, घी मिलाकर गांव में वितरित की जाती हैं।
प्रत्येक अन्नदाता करता है पूजा
क्षेत्र में प्रत्येक गांव का अन्नदाता यह पूजा करता है। किसी कारणवश कोई अन्नदाता पूजा नही कर पाता तो यही पूजा वह अगले वर्ष करता है। धरती माँ की यह पूजा अन्नदाता की लिए लाभकारी मानी जाती हैं।
ऐसे की जाती है , मछुन्दरी माँ की पूजा
रवी मौसम में जिस किसान की बोवनी पूर्ण हो जाती है, वह सबसे पहले अपने खेत में लकड़ी की मढ़िया बनाते है, उस मढ़िया के भीतर आटे के हल अथवा मिट्टी के ढ़ेले को मछुन्दरी माता की प्रतिमा मानकर रखते हैं। इसके बाद धरती माँ की पूजा अर्चना कर गुंगरी भेंट की जाती हैं।
मिट्टी के करवे में दुध भरकर मढ़िया के सामने रखकर गर्म किया जाता हैं, ऐसी मान्यता है , कि यदि दुध उफनकर माँ नर्मदा नदी दिशा की ओर बहता है, तो फसलो का उत्पादन अच्छा होता है। इसके बाद परिवार का प्रत्येक सदस्य खेत में लोट मारता है तथा अन्य सदस्य एकदूजे को छोटे छोटे कंकड मारकर परंपरा को पूर्ण करते हैं।
वर्ष में एक बार होती है यह पूजा किसानों से मिली जानकारी के अनुसार रवी मौसम में फसलो की बोवनी के बाद ही पूर्ण विधि विधान के साथ मछुन्दरी माता की यह रोचक पूजा वर्ष में एक बार ही की जाती है। किसानों ने बताया कि पूजा में मछुन्दरी माता की खूब जय बोली जाती हैं। जिससे प्रसन्न होकर माता आशीर्वाद देती है, तो फसलों की खूब पैदावार होती हैं।
पूजा ही परंपरा हैं।
खेत किसानो के लिए माँ के समान है । विधि विधान के साथ अन्नदाता द्वारा मछुन्दरी माँ की पूजा खेतो के प्रति आस्था रखकर अच्छी पैदावार के लिए प्राचीन परंपरा के साथ की जाती है। क्षेत्र का प्रत्येक किसान यह पूजा श्रद्धाभाव से करता हैं।
राजनारायण गौर, भाकिसं ,जिला हरदा