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गलत दिशा में गणेश जी की मूर्ति स्थापित होने के कारण पूजन फलदायी नहीं होता

ज्योतिष के अनुसार मिट्टी से बने गणेश की मूर्ति की स्थान ईशान कोण यानी पूर्व-उत्तर दिशा में करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कई बार अनजाने में गलत जगह या वास्तु के अनुसार गलत दिशा में गणेश जी की मूर्ति स्थापित हो जाती है। इसके कारण पूजन फलदायी नहीं हो पाता। 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी के दिन शहर के हर घर में गणेश मूर्तियों की स्थापना की जाएगी। शहरवासी अपने घर में मिट्टी से बने श्रीजी ही लेकर आएं। मिट्टी की मूर्तियों को जलाशयों में विसर्जित करने से जलीय संपदा को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा। जबकि पीओपी से बनी मूर्तियों से जल में आक्सीजन मात्रा घट जाती है और जलीय संपदा को नुकसान पहुंचता है।

गणेश स्थापना इन दिशा में ऐसे कर सकते हैं

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ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पूजन में दिशा का विशेष महत्व होता है। श्रीगणेश जी की मूर्ति स्थापित करने में भी दिशा और जगह की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी की पीठ किस दिशा में हो । गणेश जी को विराजित करने के लिए ब्रह्म स्थान, पूर्व दिशा और उत्तर पूर्व कोण शुभ माना गया है। भूलकर भी श्रीजी को दक्षिण और दक्षिण पश्चिम कोण यानी नैऋत्य में नहीं रखें। सीढ़ियों के नीचे, गैरेज, स्टोर रूम, कपड़े धोने का कमरा, शयनकक्ष और स्नानघर में इन्हें स्थान न दें। घर या आफिस में एक ही जगह पर गणेश जी की दो मूर्ति एक साथ न रखें। वास्तु विज्ञान के अनुसार इससे ऊर्जा का आपस में टकराव होता है, जो अशुभ फल देता है। अगर एक से अधिक गणेश जी की मूर्ति हैं तो दोनों को अलग-अलग स्थानों पर रखें।

मूर्ति के पीछे न हो खाली जगह, दीवार जरूरी

भगवान गणेश को मंगलमुखी भी कहा जाता है। गणेश जी के मुख की तरफ समृद्धि, सिद्धि, सुख और सौभाग्य होता है। गणेश जी के पृष्ठ भाग पर दु:ख और दरिद्रता का वास माना गया है। इसलिए स्थापना के समय यह ध्यान रखें कि मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ न हो। पीछे की तरफ दीवार होनी चाहिए। घर में गणेश जी की बांयी ओर सूंड वाली मूर्ति रखना अधिक मंगलकारी माना गया है, ऐसा करने से जल्द फल की प्राप्ति होती है।