टिमरनी के समीपस्थ ग्राम पोखरनी में चल रही संत सिंगाजी महाराज की परचरी पुराण का आज विश्राम दिवस है। यह पंचदिवसीय आयोजन ग्राम के वरिष्ठ कांताप्रसाद दोगने तथा उनके सुपुत्र भगवान दास दोगने के द्वारा आयोजित किया गया है तथा आज पूर्णाहुति दिवस पर महाप्रसाद के रूप में भंडारे का आयोजन भी रखा गया है। दीदी श्री ने कहा की स्थूल शरीर के भीतर एक और सूक्ष्म शरीर है तथा इन्ही दोनो आवरणों के बीच में कारण शरीर में बीज रूप में परमात्मा सभी जीवों में विराजमान है जो सत्य, चित्त और आनंद स्वरूप है। माया के वशीभूत होकर जीव स्वयं का विस्मरण कर देता है और 84 लाख योनियों में भ्रम वश भटकता है जबकि निज स्वरूप को पहचानकर ब्रम्हमय होना तथा परम आनंद स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति करना ही जीव का एकमात्र लक्ष्य है। जैसे सरिता सागर की तरफ स्वत: ही बहती है ठीक वैसे ही जीव भी आनंद का अंश होने के कारण स्वत: ही आनंद और प्रकाश की तरफ प्रवाहित होता है, अंतर बस इतना है की भ्रम में पड़कर जीवन में गुरु की उपस्थिति नही होने से क्षणभंगुर सांसारिक सुखों में ही लिप्त रहता है। संतो के अवतरण का यही उद्देश्य है की इस दुखमयी ओर क्षणिक सुखों के अलावा भी एक जगत है जो अपना है, जहा नित्य आनंद है, स्वयं का स्वरूप है। जीव को तब तक बार बार संसार में फेका जायेगा जब तक की यह बुद्ध, कबीर, सिंगाजी महाराज की तरह स्वयं को पहचान न ले।
ब्रेकिंग