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पर्ची देखकर डॉक्टर ही नहीं समझ पा रहे क्या करें जांच, ऐसा है मामला

ग्वालियर। जयारोग्य अस्पताल में प्रतिदिन हजारों जांचें होती हैं। डॉक्टर सादे कागज की पर्ची पर केवल टेस्ट का नाम लिखकर दे देते हैं। इस कारण माइक्रोबायोलॉजी विभाग में डॉक्टरों को यह समझना मुश्किल हो जाता है कि संबंधित डॉक्टर किस हिस्से की जांच, किस उद्देश्य से कराना चाहता है।

ऐसे में विशेष अंग पर फोकस करने की जगह जांच का दायरा बढ़ जाता है और रिपोर्टिंग में टाइम अधिक लगता है। मरीज को रिपोर्ट देरी से मिलने के कारण इलाज भी देरी से शुरू होता है।

जेएएच माधव डिस्पेंसरी में ओपीडी में प्रतिदिन करीब 1800-2000 मरीज पहुंचते हैं। इनमें से 800-1000 रोगियों को तमाम तरह की जांचे लिखी जाती हैं। रक्त संबंधित जांचों में डॉक्टर केवल टेस्ट का नाम लिखकर सादी पर्ची मरीज को थमा देते हैं, जबकि नियमानुसार पर्ची पर मरीज की बीमारी से संबंधित पूरा ब्यौरा लिखना होता है। ताकि जब लैब में जांच हो तो विशेष हिस्से पर फोकस किया जा सके।

यही नहीं डॉक्टर जांच क्यों कराना चाहते हैं, यह भी पर्ची पर नहीं लिखा जाता है। ऐसे में लैब में जब जांच होती है तो दायरा एक विशेष हिस्से से बढ़कर पूरा शरीर हो जाता है। इससे जांच में समय अधिक लगता है और मरीज को रिपोर्ट मिलने में देरी होती है। यदि जांच पर्ची में क्लीनिकल हिस्ट्री लिखी हो तो लैब में जांच करते समय डॉक्टर पूरा फोकस बीमारी से संबंधित जांच पर ही करेगा। इससे रिपोर्ट भी सटीक और जल्दी जाएगी।

ये निर्देश दिए

जीआर मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एचओडी ने सभी विभागों को 29 सितंबर को पत्र जारी किया है, जिसमें डॉक्टरों से कहा गया है कि जांच पर्ची में मरीज की पूरी जानकारी भरकर ही सेम्पल जांच के लिए भेजा जाए। क्लीनिकल हिस्ट्री नहीं होने पर सेम्पल को स्वीकृत नहीं किया जाएगा। यदि पर्ची पर सबकुछ लिखा होगा तो रिपोर्ट जल्दी और सटीक मिलेगी।

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इतनी जांच होती हैं प्रतिदिन

माइक्रोबायोलॉजी विभागः डेंगू, कल्चर टेस्ट सहित करीब 120-150 जांचे प्रतिदिन होती हैं।

सेन्ट्रल पैथोलॉजीः मलेरिया, शुगर सहित अन्य प्रकार के करीब 500 से अधिक टेस्ट प्रतिदिन होते हैं।

इनका कहना है

बॉडी के हर हिस्से में अलग-अलग बैक्टीरिया होते हैं। उदाहरण के लिए किसी मरीज के पस(मवाद) पड़ गया। पर्ची में स्पष्ट लिखा होगा तो हम विशेष रूप से उसी हिस्से की जांच पर फोकस करेंगे। इससे रिपोर्ट जल्दी मिलेगी, मरीज की परेशानी कम होगी।

-डॉ. केपी रंजन, प्रवक्ता ,जीआर मेडिकल कॉलेज