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स्त्री की असल स्थिति क्या है भारत में

राखी सरोज :-

भारत में स्त्री को देवी का दर्जा दें कर पूजा जाता है। किंतु नारी रूप में जन्म लेना और जीवन जीना क्या स्त्री के लिए भारत देश में उतना ही आसान है जितना देवी रूप में पूजा जाना। चाहे हम रामायण की बात करें या महाभारत की हर युग में स्त्री ही है जिसे संघर्ष, अपमान, दर्द से गुजरना पड़ता है। भारत देश में स्त्री को देवी बनाकर पूजा तो जाता है, किंतु जब वही स्त्री एक शारीरिक आकार लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत होती है तो उसे देवी नहीं वासना की वस्तु समझा जाता है।

स्त्री जिस पर हर कोई अपना वर्चस्व जमाना चाहता है चाहे वह फिर समाज की हो,  पुरुषों हों या स्वयं स्त्री। एक अजीब सी विडंबना है कि अपने से कमजोर दिखा स्त्री को उस पर अपना काबू पाने की कोशिश में स्त्री भी स्त्री का शोषण करती है। जिस देश में शास्त्रों और ग्रंथों में स्त्री देवी रूप धारण कर राक्षसों का वध कर संसार का उद्धार करती है वही स्त्री सामान्य जीवन में पुरुष प्रधान समाज में कमजोर समझी जाती है।

स्त्री योनि में पैदा होने वाली लड़की को सुनने को मिलता है कि तुम कमजोर हो सकती हो, शक्ति हीन हो तुम्हें संरक्षण की आवश्यकता है। मानसी को या शारीरिक शोषण एक अपराध है किंतु फिर भी प्रत्येक दिन प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्त्रियों का शोषण क्या जाना आम बात है। जिसे सहन करना हम अपने स्त्री का गुण बता उसकी प्रशंसा करते है। स्त्री को बेटी पत्नी प्रेमिका मां हर रूप में हर स्थान पर नियमों में बांध अपमान का ऐसा जहर उनके मन में घोला जाता हैं कि वह खुद को अधिकतर अपमान के लायक ही समझने लगती हैं।

सोशल वेबसाइट पंजाबी स्त्री के विचारों पर अश्लील और शर्मनाक टिप्पणियॉ करना पुरुष वर्ग के लिए एक आम बात हो गई है। अक्सर आजकल के समय में पुरुषों द्वारा स्त्रियों को सोशल वेबसाइट पर सभी के सामने धमकियां देने के साथ ही साथ बलात्कार जैसे अपराध करने की बात कहीं जाती है। स्त्रियों के लिए दूसरों के इस तरह के विचार प्रकट करना यदि हम बात मानते हैं हमें यह विचार करने की जरूरत है कि हम स्त्रियों को किस प्रकार का जीवन जीने के अपने सामाज और देश में वातावरण दें रहें हैं।

यदि हम अपने देश की आधी आबादी को डरा धमका कर यह बताते रहे कि आप पुरुषो के अनुसार जीने के लिए बनी हो, आपको वही करना पड़ेगा जो इस देश के पुरुष चाहते हैं क्योंकि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है। चाहे फिर आपके साथ कितना भी घिरोना  बर्ताव किया जाए आप उसका विरोध नहीं कर सकती हैं केवल सहन कर सकती हैं चुप्पी साध के।

हमें समझना होगा कि स्त्री कोई वस्तु नहीं है उसे पुरुष को शारीरिक सुख देने और उनकी हुक्म को मारने के लिए इस दुनिया में नहीं लाया गया है। स्त्री का भी अपना एक अस्तित्व है अपने विचार हैं अपना जीवन है हम कोई नहीं होते यह बतलाने वाले कि वह अपना जीवन किस प्रकार से जिएं। किन नियमों के आधार पर जिएं।

प्रकृति ने पुरुष और स्त्री को शारीरिक रुप से अलग-अलग अवश्य ही बनाया है। किंतु भेदभाव क जिस प्रकार के नियम हम अपने समाज में बना रहें हैं उसका हक अपने एक मनुष्य होने के आधार पर प्राप्त नहीं है। स्त्री हो या पुरुष किसी से भी हम शारीरिक बनावट के आधार पर अपनी मानसिक सोच को आधारित सर उनसे उनके जीवन जीने का अधिकार नहीं छीन सकतें हैं।

हमारे समाज में पुरुषों का स्त्रियो के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार है। उसमें 21वी सदी में कुछ अधिक बदलाव नहीं आया है, बस कुछ प्रतिशत स्त्रियों ने अपने संघर्ष से आने वाले कल के लिए एक उम्मीद बना दीं हैं। हम स्त्रियों के वस्त्रों तक पर भी अपनी मानसिक सोच का भार लाद देते हैं। पुरुष स्त्रियों के वस्त्र देख उनकी ओर आकर्षित हो कर उनके साथ छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम देते हैं। ऐसे अपराधों के होने पर हम स्त्रियों को दोषी बना कर कटघरे में खड़ा कर देते हैं। हम स्त्रियों से पुछते है कि वह इस प्रकार के वस्त्र क्यों पहनती हैं जिससे पुरुष उनकी ओर आकर्षित हो‌।

हमारे देश में स्त्रियो के घर से बाहर जाने का समय भी समाज द्वारा ही बतलाया जाता है। कानून ने जरूर स्त्री और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं। फिर भी स्त्री होने के कारण देश की आधी आबादी रात अंधेरे में घर के बाहर नहीं जा सकती है क्योंकि हमारा समाज पुरुष को रात के अंधेरे में इंसान से जानवर बनने दें देता है। जिसके कारण वह स्त्री को रात के अंधेरे में देख हैवान बन जाते हैं, ऐसे में पुरुष प्रधान समाज  स्त्रियों से ही सवाल करता है कि वह आधी रात बाहर क्यों गई।

भारत में स्त्रियों को वोट करें देश के लिए सरकार का चुनाव करने का अधिकार है। किंतु अपने जीवन के निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। स्त्री होने के कारण आप यह नहीं बता सकती कि आपको शिक्षा किस माध्यम से और किस उच्च उच्च स्थान तक प्राप्त करनी है। आप सपने देख सकती हैं किंतु वही सपने जिनकी इजाजत आपको आपका समाज और परिवार देगा।

जिस भारत देश की स्त्री चांद तक पहुंच गई है। उसी देश की अधिकतर स्त्रियों को अपना घर चलाने के लिए मानसिक और शारीरिक शोषण प्रत्येक दिन सहना पड़ता है जबकि कानूनी तौर पर यह है एक अपराध है। स्त्री, मां बन सृष्टि को आगे बढ़ाती है। किंतु यही कार्य स्त्री के लिए एक अपराध बन जाता है जब उससे उसका व्यवसाय या सपने छीन लिए जाते हैं क्योंकि वह मां बनने वाली होती हैं। समाज की सोच फायदे और नुकसान दोनों केवल पुरुष आधारित होते हैं उन में स्त्रियों का कोई भी हिस्सा नहीं होता है।

हमारे देश और समाज में स्त्रियों की समस्याओं पर विचार तो बहुत किया जाता है। उनके लिए कानून और अधिकारों की बात ही नहीं की जाती बनाए भी जाते हैं किंतु अपनी मानसिक सोच में स्त्रियों के लिए बदलाव लाने का कार्य करना भूल जाते हैं हम इस तरह से हो जाते हैं। कि अपने साथ कार्य करने वाली स्त्रियों को जिस हद तक वह सहन कर सकते उस हद तक अपनी बातों और हरकतों से परेशान करते हैं। अपमान का हर घूंट पीने के लिए स्त्री को मजबूर किया जाता है कभी रिश्तो के नाम पर तो कभी कमजोर बताए जाने के नाम पर।

यह सब कुछ करते हुए हम अक्सर भूल जाते हैं कि हम स्त्रियों का नहीं स्वयं का अपमान कर रहे हैं। हम सभी स्त्रियों का ही अंश है चाहे हमारी मां का रंग और नाम कुछ भी हो वह एक स्त्री ही है।  विचार करिए यदि स्त्री पुरुषों को जन्म देना ही भूल जाए या मना कर दे तब क्या होगा सभी सामाजिक पुरुषों की आने वाली पीढ़ी का और उनके पुरुष प्रधान समाज के नियमों का। हां स्त्री को शारीरिक और मानसिक आघात जरूर दे सकते हैं किंतु किसी भी स्त्री को जबरन एक पुरुष को पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

हमें स्त्रियों को देवी रूप में सम्मान देना ही नहीं, बल्कि इंसानी रूप में इज्जत देना भी सीखना होगा। किसी के वस्त्रों को देख उसके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करना या यह कहना कि वह आप को बलात्कार करने के लिए मजबूर करती है। हमें समझना होगा हम कैसी मानसिक और घिरोनी सोच में अपना जीवन जी रहे हैं। यदि अंगों को देख बलात्कार की भावना जागती तो स्त्रियों से कई अधिक बलात्कार पुरुषों के होने चाहिए। हमारे समाज में पुरुष अक्सर ही अर्ध नग्न अवस्था में दिख जाते हैं।

हम स्त्रियों को इज्जत ना दे कोई बात नहीं किन्तु हमें उनको समानता का अधिकार प्राप्त है उससे हमें छीनना नहीं चाहिए। एक देश और समाज के विकास के लिए आवश्यक है कि हम अपने देश की आधी आबादी कहीं जाने वाली स्त्रियो को वहीं अधिकार दें जो हमारे समाज में पुरुषों को दिए जा रहे हैं। स्त्रियों को भी समान मौके और अधिकार दें, किन्तु यह उन पर दया दिखा कर नहीं उनका हक़ समझ कर दें।