जल, जंगल, जमीन बचाना हमारा मूल काम है इस धरती पर सबसे पहले आदिवासी इसके मालिक है
मकड़ाई समाचार झाबुआ। दो दिवसीय 28वा आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन कार्यक्रम झाबुआ की पावन धरती पर आयोजित किया गया, जिसका आज समापन हुआ। वैसे प्रति वर्ष अनुसार यह आदिवासी एकता महासम्मेलन अलग अलग राज्य में कार्यक्रम करते आ रहा है। इस बार झाबुआ की पावन धरती पर यह कार्यक्रम किया गया है। देश के कोने कोने से आदिवासी हजारों की तादात में एकत्रित होकर आये और इस महासम्मेलन को सफल बनाया गया है।
विशेषकर युवक-युवती बढ़कर चढ़कर यहां पर उपस्थित हुए हैं अपने अपने राज्य एवं क्षेत्र के रहन सहन अनुसार अपनी अपनी वेशभूषा में एवं तीर कमान, गोफन, फालिया और गहने से सज धज कर प्रस्तुति दी गई है। इस कार्यक्रम में कई राज्यों के महा अनुभवी बुद्धिजीवी प्रवक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे हैं। अपने अधिकारों के हक के लिए लड़ने को तैयार रहे कभी पीछे नहीं हटना है। हमारे महापुरुष टंट्या मामा, पूंजा भील, दिलीप सिंह भूरिया आदि को याद किया गया और उनके पद चिन्ह पर लड़ते रहना बढ़ते चलना इस प्रकार कई बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। और जल, जंगल, जमीन बचाना हमारा मूल काम है। इस धरती पर सबसे पहले आदिवासी इसके मालिक है। और रहेंगे एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे ऐसे कई नारों से पूरा कार्यक्रम गुंजा हुआ रहा है। संस्कृतिक एकता बनाए रखें रीति-नीति वार त्यौहार पूर्वजों द्वारा करते आ रहे हैं, कभी लुप्त नहीं होना चाहि।ए इस महा सम्मेलन कार्यक्रम में आदिवासी परंपराओं एवं यादगार कपड़े तीर कमान देसी दवा बाबा देव, गल आदिवासी देवी-देवताओं प्रतिक जैसे कई स्टाल लगे हुए थे।
मकड़ाई समाचार झाबुआ दिनेश अखाड़ीया की खास रिपोर्ट