मकड़ाई समाचार भोपाल। विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर जब मुख्य राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं, तो ऐसे में कर्मचारी कहां चुप बैठने वाले थे। शिक्षक और वर्ष 2005 के बाद सरकारी सेवा में आए करीब साढ़े तीन लाख कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग को लेकर आंदोलन की रणनीति तैयार कर चुके हैं। आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ ने जहां मनोकामना यात्रा शुरू कर दी है, तो मध्य प्रदेश कर्मचारी मंच ने भी प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
कर्मचारियों का कहना है कि नई पेंशन से घर खर्च चलाना संभव नहीं है। वे बताते हैं कि कर्मचारी की सेवानिवृत्ति या मृत्यु के बाद 1200 से 2500 रुपये मासिक पेंशन मिल रही है। ऐसे में आश्रित पत्नी बेटी की शादी करे, बच्चों को पढ़ाए या घर खर्च चलाए। ज्ञात हो कि सरकार ने वर्ष 2010 से नई पेंशन (अंशदायी पेंशन) योजना लागू कर दी है। इसमें 10 प्रतिशत सरकार और 14 प्रतिशत कर्मचारी का अंश रहता है।
सरकार ने वर्ष 2005 में पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी है। इसमें कर्मचारी की सेवानिवृत्ति या मृत्यु के समय जो अंतिम वेतन था, उसकी 50 प्रतिश्ात राशि पेंशन के रूप में मिलती थी। इससे परिवार चलाना आसान हो जाता था। क्योंकि 12 से 20 हजार रुपये मासिक पेंशन आ जाती थी, पर अब ऐसा नहीं है। सरकार की नई पेंशन ने कर्मचारियों को एक बार फिर सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है।
पेंशन का महत्व कर्मचारियों को तब समझ में आया, जब कोरोना काल में कई कर्मचारियों की मृत्यु हुई। उनके परिवार को अंशदान में जमा राशि में से 50 प्रतिशत एक मुश्त देकर शेष 50 प्रतिशत राशि से पेंशन तय कर दी गई, जो 1200 से 2500 रुपये तक बन रही है। जबकि उन परिवारों पर जिम्मेदारी ज्यादा है। इसे लेकर कर्मचारियों के मन में गुस्सा पनप रहा है और चुनावी मौसम से ठीक पहले वे सड़कों पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
उदाहरण-एक
रतलाम जिले की चेतना पचौरी सितंबर 1998 में सेवा में आईं। हाल ही में सेवानिवृत्त हो गईं और पेंशन 2049 रुपये प्रति माह मिल रही है। जबकि उनका अंतिम वेतन 58 हजार 576 रुपये था।
उदाहरण-दो
प्राइमरी स्कूल सलैया में पदस्थ रहे शिक्षक अनिल कुमार झारिया की अगस्त 2019 में मृत्यु हो गई। उनके परिवार को 1995 रुपये मासिक पेंशन मिल रही है। उनकी दोनों बेटी शादी योग्य हैं।
इनका कहना है
– जिन कर्मचारियों की मृत्यु हो गई या जो सेवानिवृत्त हो गए हैं। उनके परिवारों की स्थिति दयनीय है। सरकार हर वर्ग की सोच रही है, तो इनकी भी सोचे। कोई डेढ़-ढाई हजार रुपये में कैसे काम चला सकता है। यही बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के लिए हम मनोकामना यात्रा कर रहे हैं।
भरत पटेल, प्रांताध्यक्ष, मप्र आजाद आजाद-शिक्षक संघ