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क्यों होता है थाने में हनुमान मंदिर | Why is there Hanuman temple in the police station?

   लेखक राष्ट्रीय कवि
चौधरी मदन मोहन समर

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भला सुंदर काण्ड और हनुमान मंदिर पर विवाद हो सकता है? अगर ऐसा कोई करता है तो वह परंपरा से परिचित होते हुए भी अनावश्यक विवाद कर रहा है। लगभग हर थाने में आपने हनुमान जी के मन्दिर देखे होंगे। यह केवल धार्मिक कारण नहीं है। पुलिस मान्यता के अनुसार हनुमान जी विश्व के सर्वश्रेष्ठ अनुसन्धान कर्ता हैं। कड़ी से कड़ी जोड़ कर उन्होंने सीता जी की खोज की और रावण की पूरी सुरक्षा व्यवस्था को भेद कर उसके महलों ठिकानों और पुरों में होते हुए अशोक वाटिका में उनके निकट पहुँच कर अनुसन्धान पूर्ण किया। इसलिए थाने में हनुमान मन्दिर की स्थापना अपने सबसे वरिष्ठ विवेचक के प्रति आदरांजली है। यह कोई सन दो हजार तीन से शुरू नहीं हुई। अंग्रेजों के समय से यह प्रथा है। अनेक मंदिर सौ साल से भी ज्यादा समय से थाने में निर्मित हैं। ऐसा भी नहीं कि सन 1947 से 2003 के बीच किसी थाने में मंदिर न बनाया गया हो अथवा प्रतिबंध रहा हो। ये मंदिर सार्वजनिक रूप से आम जनता के लिए खुले होते हैं। पुलिस परिवारों के साथ सभी इनमें आते जाते हैं। इनमें पूजा करने वाले पुजारी को सारा स्टाफ यथायोग्य अपना योगदान देकर मानदेय देता है। लोग अपनी मन्नत मांगते हैं तथा सुंदरकांड करते हैं। कोई रोक–टोक नहीं होती। अनेक थानों में मजारे भी हैं जिनकी विधिवत खिदमत होती है। मैने स्वयं सन 1989 में सलसलाई और 1994 में बडौद थाने में हनुमान जी की प्राणप्रतिष्ठा करवाई थी। तब तो किसी ने कोई विरोध नहीं किया था। शास्त्रपूजा दशहरे पर थाने और पुलिस लाइन में होती है। ये उत्सव होता है पुलिस का। सागर में तो परेड वाले हनुमान जी हैं।

मेरा मानना है कि थाने के हनुमान मंदिर का राजनीति के लिए “उपयोग अथवा विरोध” उचित नहीं है। देश के 95%थानों में आपको हनुमान मंदिर मिलेंगे। न मानो तो सर्वे कर लो। अगर नए थाने में अभी न बने हों तो पुराने में जाकर देख लें। राजनीति अपनी जगह है, लेकिन आस्था अपनी जगह है।
थाने के अलावा कोर्ट व अस्पताल में भी आपको मंदिर मिलेंगे।