नर्मदा बैक वॉटर मे डूबी रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण की तपस्थली ! माँ नर्मदा के किनारे तपस्या कर शिव को किया था प्रसन्न, निमाड़ के आदिवासी अंचलो मे होती मेघनाथ पूजा
मकड़ाई एक्सप्रेस 24 बड़वानी। माँ नर्मदा के किनारो के अनेक तीर्थ स्थान सरदार सरोवर बांध के वॉटर लेवल बड़ने के बाद से डूब गये है। मेघनाद तीर्थ से प्रसिद्ध इस स्थान पर श्राद्ध, तर्पण, ब्रह्मभोज का सौ गुना फल मिलने की लोकमान्यता है। नौकानुमा यह पुरातन मंदिर अब पूरी तरह नर्मदा के बैकवाटर में जलमग्न है।
सहस्त्रार्जुन ने रावण को बनाया था बंदी
पश्चिम निमाड़ के साहित्यकार दुबे के अनुसार निमाड़ अंचल में स्थित महेश्वर का अस्तित्व सदियों पुराना है। रामायण व महाभारत कालीन कृतियो भी इसका उल्लेख मिलता है।
सुन्दरकाण्ड मे है जिक्र
मान्यतानुसार लंकापति रावण विश्व विजय का सपना लिए जगह जाकर राजाओ से युध्द करता था।जब उसका सामना माहिष्मति (अब महेश्वर) के सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन से हुआ। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बनाकर अपने घुड़साल में छह माह तक कैद रखा।
इस प्रसंग को गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के सुंदरकांड में हनुमान-रावण संवाद के दौरान लिखा है। चौपाई है- जानऊ मैं तुम्हरि प्रभुताई, सहसबाहु सन परी लराई।
माहेश्वर मे रावनेश्वर शिवालय
वर्तमान समय में यहां स्थिति किला के पूर्वी तरफ एक टीले रूप में यह स्थान है, जहां शिवलिंग भी स्थापित है। इसे रावणेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है। उपेक्षा के चलते यह स्थान कंटीली झाड़ियों और बढ़ते अतिक्रमण में गुम है।
नर्मदा नदी के तट पर ही रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद ने तपस्या की थी। उनके तपस्या स्थल आज नर्मदा के बैकवाटर में डूब गए हैं। नर्मदा पुराण के रेवाखंड में यहां जांगरवा गांव के पास मेघनाथ की तपस्थली होने का उल्लेख मिलता है। इस स्थान का नाम तभी से मेघनाथ तीर्थ पड़ गया था। बड़वानी के ग्राम जांगरवा के समीप नदी धारा के मध्य मेघनाद तीर्थ स्थित शिव मंदिर।।
लंका के राजा महाबली रावण, भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद ने नर्मदा नदी के तट पर तपस्या की थी। यह स्थान वर्तमान मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में है। दुर्भाग्य से ये तपस्थली नर्मदा नदी के बैकवाटर में डूब गई हैं।
आकाश मार्ग से जा रहे मेघनाथ के हाथो गिरा था शिवलिंग
इस क्षेत्र मे रामायणकालीन कई पुरातन धरोहरें हैं। इनमें से कई अब भी नर्मदा के पानी से बाहर हैं, किंतु उपेक्षित हैं। नर्मदा पुराण के रेवाखंड 56 (अ) के अनुसार रावण का पुत्र मेघनाद जब आकाश मार्ग से धावड़ीकुंड (वर्तमान समय में मप्र के बड़वानी जिले के गांव जांगरवा के समीप) से दो शिवलिंग लेकर जा रहा था। तब रास्ते में उसके हाथ से एक शिवलिंग छूटकर नर्मदा नदी में गिर गया। इसे नर्मदाजी की कृपा समझकर मेघनाद ने यहीं पर शिव पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया। तभी से इस स्थल का नाम मेघनाद तीर्थ प्रसिद्ध हुआ।