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आदिवासी वनांचल की स्वास्थ्य सुविधाएं, आज भी खाट पर टिकी, चारपाई पर लिटाकर मरीज को ले जाते अस्पताल

मकड़ाई एक्सप्रेस 24  mp/ CG । आज का भारत ज्ञान और तकनीक में विश्व केे किसी भी देश को टक्कर देने की क्षमता रखता है।हमारे पास विश्व की बेहतर स्वास्थ सेवाएं है। मगर शर्म की बात तो यह है कि हमारे वनांचल ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ सेवाएं खाट के भरोसे चल रही है। ग्रामीण वनांचल के क्षेत्रों में आज भी कई स्थान ऐसे है। जहां पर ग्रामीणों को नजदीक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए मरीज को खाट चरपाई पर लिटाकर लेे जाना पड़ता है क्योकि उन तक अस्पताल का वाहन नही पहुंच पाता है।मप्र और छत्तीसगढ़ के वनांचल के आदिवासी इसी समस्या जूझ रहे है। गौरतलब है कि छत्‍तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजुर इलाके के अंदरूनी गांव के ग्रामीणों की स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी खाट पर टिकी हुई है।
ग्राम पंचायत स्वरूपनगर का आश्रित गांव पोरियाहुर के ग्रामीण विष्णु गावड़े को रात 3 बजे अचानक उल्टी दस्त होने लगी। स्थिति इतनी खराब हो गई कि सुबह तक इंतजार करना संभव नहीं था। उसे पैदल या मोटरसाइकिल में बैठाकर अस्पताल भी नहीं ले जाया जा सकता था।

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मरीज की जान बचाने चारपाई पर ले गए अस्‍पताल
मरीज की जान बचाने गांव के ग्रामीण चारपाई पर मरीज विष्णु गावड़े को लेटाया पैदल चल पड़े। और संजीवनी वाहन सुविधा के लिए 108 को काल किया। गांव से 6 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद जब ग्रामीण पुलविहीन बारकोट नदी पार करने के बावजूद भी नदी के दूसरी ओर संजीवनी वाहन का लाभ नहीं मिला। जिससे मरीज की स्थिति देख ग्रामीणों ने पुनः पैदल चलने की तैयारी की और तीन किलोमीटर दूर और पैदल चलकर संगम पहुंचे। ऐसे में कुल 9 किलोमीटर पैदल दूरी तय करने के बाद चारपाई से मरीज को मुक्ति मिली और संजीवनी वाहन के जरिये पखांजुर सिविल अस्पताल लाया गया।जहां मरीज को भर्ती कराकर उपचार किया जा रहा है।

वहीं आधुनिक के इस युग मे भी ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का न मिल पाया सरकार के लिए नाकामी से कम नही है। और अंदरूनी इलाके के ग्रामीणों ने साफ अहसास करा दिया है कि वे सरकार के भरोसे पर नहीं टिके हुए है। बारकोट नदी पुलविहीन होने के चलते संजीवनी वाहन का गांव तक पहुंचना संभव नहीं थाए लेकिन नदी के तट तक एंबुलेंस पहुंच सकती थी। जिससे ग्रामीणों को शीघ्र और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हो पाती।