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खंडवा बैंक ऑफ़ इंडिया के तत्कालीन ब्रांच मैनेजर समेत 7 पर गैर जमानती धाराओं में FIR दर्ज, जाने क्या है मामला

खंडवा। अदालत ने फर्जी दस्तावेज बनवाकर करोड़ों रुपए ऋण लेने देने धोखाधड़ी मामले में बड़ा फैसला दिया है। इसमें बैंक आफ इंडिया के दो अधिकारियों और पॉलिटेक्निक कॉलेज के दो वरिष्ठ पदाधिकारी समेत सात लोगों पर धोखाधड़ी, कूटरचना, फर्जी दस्तावेज और मिलीभगत जैसी बड़ी धाराओं में प्रकरण दर्ज कर संज्ञान लिया है। इन पर कई धाराओं में मामला दर्ज हुआ है।

दरअसल, खंडवा के व्यापारी वीरेंद्र अग्रवाल ने बैंक ऑफ इंडिया से वेयरहाउस बनाने और व्यापार करने के लिए लगभग चार करोड रुपए का ऋण लिया था। इसके एवज में वेयरहाउस और एक मकान को बंधक रखा था।

वीरेन्द्र अग्रवाल के मुताबिक बैंक के अफसरों ने साठगांठ कर, जर्नलवीर सिंह उर्फ राजू भाटिया को खरीददार भी बना लिया। इस संपत्ति को कम वैल्यू आंककर इन सभी लोगों ने सारे दस्तावेज खण्डवा जिला पंजीयक कोर्ट और अन्य जगह दे दिए। बाद में यह सब फर्जी साबित हुए ।

प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री मोहन डाबर की अदालत ने बैंक के दो अधिकारी अभिनीत तिवारी और तत्कालीन ब्रांच मैनेजर राहुल तिवारी के अलावा खरीददार जर्नल वीरसिंह उर्फ राजू भाटिया के अलावा बैंक के वैल्यूअर इंजीनियर अश्वि नी बाहेती और फर्जी प्रमाण पत्र देने वाले पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अपूर्व साकल्ले ड्रॉप्समेन बी. डी. सनखेरे के अलावा ठेकेदार दीपेश राठौर पर कई धाराओं में मामला दर्ज कर संज्ञान लिया है।

वीरेन्द्र अग्रवाल ने मीडिया को दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि कलेक्टर कोर्ट ने जिस संपत्ति की वैल्यू 6 करोड़ 15 लाख रुपए बताई थी। इसे बैंक ने सिर्फ डेढ़ करोड़ रुपए में धोखाधड़ी कर सांठगांठ के तहत बेच दिया। सारे कागज और दस्तावेज भी बड़े अधिकारियों और ठेकेदारों से बनवा लिए। जो, अदालत में फर्जी साबित हुए हैं।

इसमें बड़ी भूमिका बैंक के वेल्युवर अश्विन बाहेती की भी है। कागज पेश करते हुए कहा कि वर्ष 2013 में 3 करोड़ 20 लाख रुपए से अधिक वैल्यू और गाइड लाइन 2 करोड़ 95 लाख बताई गई थी। इसी वैल्यूवर ने 2021 में इसी संपत्ति की गाइडलाइन एक करोड़ 43 लाख रुपए बता दी। जबकि 8 साल में संपत्ति की कीमत कई गुना बढ़ चुकि हैं।2

बैंक के अधिकारीयों और राजू भाटिया नें साठगांठ कर 2300 वर्ग मीटर पर बने वेयरहॉउस को मात्र 613 वर्ग मीटर बताकर रजिस्ट्री भी कर दी ।

जानकारी लगते ही वीरेंद्र अग्रवाल ने इसकी शिकायत की जिसपर राजू भाटिया ने ठेकेदार दीपेश राठौर से मिलकर फर्जी दस्तावेज तैय्यार कराए और यह बताने का प्रयास किया की वेयरहाउस जर्जर हालत में था जिसे रजिस्ट्री कराने के पहले ही तोड़ दिया गया और रजिस्ट्री कराने के बाद मात्र 20 दिनों में वापस बनाकर खड़ा कर दिया गया।

आरोपी भाटिया ने पोलिटेक्निक के प्राचार्य अपूर्व साकल्ले और बी. डी. सनखेरे के साथ मिलकर फर्जी प्रमाण पत्र भी ले लिया जिसमे बताया गया की वेयरहाउस तोड़कर नया बनाया गया है। पंजीयक कोर्ट द्वारा शासन की स्वतंत्र एजेन्सी से जाँच कराई गई जिसमे वेयर हॉउस पुराना बताया गया ।

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इसके आलावा SDM न्यायालय द्वारा भी जाँच कराई गई जिसमे राजस्व निरीक्षक व पटवारी प्रतिवेदन मौका पंचनामा तैय्यार कर वेयरहाउस निर्माण पुराना होना बताया गया ।

अदालत ने इसीलिए इन सबको दोषी मानते हुए धोखाधड़ी मिलीभगत जैसी बड़ी धाराओं में प्रकरण दर्ज करने का संज्ञान लिया है। फर्जी दस्तावेज और

न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी खंडवा श्री मोहन डाबर ने फैसले के अंत में लिखा है कि दस्तावेजों के आकलन से प्रथम दृष्टया आरोपीगण अभिनीत तिवारी के विरुद्ध धारा 420 /34, 418, 465/34, 468/34, 471/34 भारतीय दंड संहिता 1860 एवं जर्नल वीर सिंह उर्फ राजू भाटिया के विरुद्ध धारा 420/34, 465/34 468/34 एवं 471/34 भारतीय दंड संहिता 1860 का अपराध एवं आरोपी राहुल तिवारी के विरुद्ध धारा 420/34, 418 भारतीय दंड संहिता 1860 एवं आरोपी अश्विन बाहेती के विरुद्ध 420/34, 418 एवं आरोपी दीपेश राठौर के विरुद्ध धारा 465/34, 468/34 एवं 471/34 एपी साकल्ले के विरुद्ध धारा 465/34,468/34 एवं 471/34 भारतीय दंड संहिता 1860 एवं आरोपी बीड़ी सनखेरे के विरुद्ध धारा 465/34 468/34, 471/34 के तहत संज्ञान लिया गया है।

वीरेन्द्र अग्रवाल इस मामले में लंबी लड़ाई लड़ी है, इसके बाद वास्तविकता सामने आई और न्यायालय ने इन धोखाधड़ी करने वालों पर मामला संज्ञान में लिया गया है।

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