मकड़ाई समाचार देवास | मध्य प्रदेश एक ऐसा स्थान, जहां प्रकृति अपने रूप से न केवल पर्यटकों को आकर्षित करती है बल्कि कई बार तो अचरज में भी डाल देती है। यहां सैकड़ों फीट की ऊंचाई से गिरने वाले धुआंधार जलप्रपात भी हैं तो हजारों फीट गहरी खाई और उसके आगे सीना ताने खड़ी सतपुड़ा की पर्वतमाला भी सजी हुई है। प्रदेश की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी में प्राकृतिक नजारों की लंबी शृंखला भले न हो लेकिन इसके आसपास ऐसे कई स्थान हैं। जहां प्रकृति की गोद में वक्त बिताया जा सकता है, भूगर्भिक हलचल से उपजे दृश्यों को देख आश्चर्यचकित हुआ जा सकता है और मान्यताओं के साथ तर्कों की नोकझोंक भी सुनी जा सकती है।
ऐसा ही एक स्थान है कावड़िया पहाड़ जो शहर से करीब 75 किमी दूर स्थित है।जिसे प्रकृति के साथ विज्ञान में रुचि है उसके लिए यह स्थान सर्वोत्तम है। यह स्थान ऐसे पर्वतों की शृंखला से घिरा है जहां पत्थर किसी मानव द्वारा तराशकर लगाए गए प्रतीत होते हैं। यहां रखा हरेक पत्थर ज्यामितीय रचना सा लगता है मतलब आयताकार, षटकोणीय, लंबवत, त्रिभुजाकार आदि। दिलचस्प बात यह है कि यहां के प्रत्येक पत्थर को जब बजाया जाता है तो उसमें से ऐसी ध्वनि निकलती है जैसी धातु पर वार करने से आती है। सलीके से बजाने पर तो यह साज के समान ध्वनि उत्पन्न करते हैं। यहां यह शिलाएं ऐसी रखी हैं मानों किसी ने इन्हें करीने से जमा रखा हो। इन पत्थरों का आकार 8-10 फीट से लेकर 50-60 फीट तक है और ऐसे पत्थर असंख्य हैं जिनसे ये पहाड़ बन चुके हैं।इस स्थान पर विज्ञान के दावे और किवदंती दोनों से ही सामना होता है। विज्ञान कहता है कि इन पत्थरों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले लावे के ठंडा होने के बाद हुआ है।
किवदंती सुनें तो पता चलता है कि किसी राजा ने अपने महल निर्माण के लिए पत्थरों को तराशकर यहां इकट्ठा करवाया लेकिन वह महल नहीं बनवा सका। कहा यह भी जाता है कि इस स्थान से पत्थर यदि कहीं और ले जाए जाएं तो वह टूट जाते हैं। आश्चर्यचकित कर देने वाली इस पहाड़ी पर भक्ति भी होती है। यहां शिवजी और हनुमानजी का मंदिर बना हुआ है और उस मंदिर तक पहुंचने के लिए इन पत्थरों से ही बनी करीब 150 सीढ़ियां हैं। यहां एक संत की कुटिया भी बनी हुई है।
इंदौर से नेमावर होते हुए देवास जिले के बागली तहसील के रास्ते इस स्थान तक पहुंचा जा सकता है। बागली तहसील में पुंजपुरा के जंगल मार्ग के बीच कावड़िया पहाड़ का रास्ता नजर आता है। इस मौसम में तो यहां जाया जा सकता है लेकिन पथरीला क्षेत्र होने के कारण तेज गर्मी में जाना ठीक नहीं है। हां, अलसुबह या शाम के वक्त इस स्थान को देखा जा सकता है। यहां जाने वाले पर्यटक भोजन-पानी अपने साथ लेकर जाएं क्योंकि वहां कुछ नहीं मिलता। वर्तमान में एक संत वहां जरूर रह रहे हैं ||जिनसे पानी या चाय की उपलब्धता हो सकती है।