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टिमरनी : संत और भगवंत में लेष मात्र भी अंतर नही – दीदी श्री चेतना भारती

टिमरनी : ग्राम पोखरनी में चल रही संत सिंगाजी महाराज की तृतीय दिवस की कथा में दीदी श्री चेतना भारती ने कहा कि सिंगाजी महाराज राजा लखमेर सिंह के राज्य से नौकरी छोड़कर गुरु भक्ति में स्वयं को समर्पित कर देते है। स्वास स्वास में सुमरण करते है, एक भी स्वास खाली नहीं जाने देते। निर्गुण भक्ति की ऐसी अलख जगाते है की हर झोपड़ी झोपड़ी और खोपड़ी खोपड़ी तक भक्ति की धारा प्रवाहित हो जाती है। जब सिंगाजी महाराज के द्वारा मढ़ी बनाते समय एक गिंडोला कट जाता है तो उन्हें हृदय में बहुत पीड़ा होती तब सिंगाजी महाराज हरी स्मरण में डूब जाते है और उसी दिन शरद पूर्णिमा पर साक्षात् परब्रम्ह प्रसन्न होकर उन्हें चतुर्भुज रूप में दर्शन देते है।

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गुरु आज्ञा से श्रावण सुदी नवमी पर मात्र 40 वर्ष की आयु में समस्त कुटुंब कबीला, शिष्य समुदाय को बुलाकर सबके समक्ष सिंगाजी महाराज जीवित समाधि ले लेते है और परम निर्वाण को प्राप्त हो जाते है। निरंतर 500 वर्षो से अखंड ज्योत के रूप में सिंगाजी महाराज नगर पिपल्या में आज भी विराजमान है। सिंगाजी महाराज ने वेदपाठी विप्रो के घर नही बल्कि एक सामान्य गवली माता पिता के घर में छोटे से गांव में जन्म लेकर, गृहस्थ परिवार में रहकर बिना किसी साधक वेश भूषा लिए गौचरण करते हुए भी उस परम पिता परमेश्वर को सहज ही प्राप्त कर लिया।

सिंगाजी महाराज ने हर सामान्य जनों के लिए गृहस्थ में रहकर नियत कर्म खेती,दुकान,मकान में रहकर बिना कुछ त्यागे ही मन से माया मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त करने की आशा का द्वार खोल दिया। सिंगाजी महाराज ने अपनी देह त्यागने की तिथि और समय स्वयं ही निश्चित किया क्युकी काल भी संत के अधीन होता है। संत और भगवंत में लेष मात्र भी अंतर नही होता है। कथा का श्रवण करने आसपास से श्रद्धालु लोग पधार रहे कथा का आयोजन ग्राम पोखरनी के दोगने परिवार द्वारा किया जा रहा है।