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मंजूर की जिंदगी का अंधियारा मिटाने के लिए फरिश्ते बनकर आए सीआरपीएफ जवान

श्रीनगर: आपको अपने जीवन में तमाम ऐसी घटनाएं सुनने को मिल जाएंगी, जहां दो भाइयों के बीच बेहद मामूली बात को लेकर न केवल बोलचाल बंद हो गईए बल्कि घर के दो हिस्से भी हो गए। देश के हर शहर, कस्बे और गांव में ऐसी घटनाएं भी मिल जाएंगी, जहां एक शख्स ने बेहद मामूली सी बात पर आपा खोकर दूसरे शख्स की हत्या कर दी। इन सभी दुखद उदाहरणों के बीच जम्मू-कश्मीर में तैनात सी.आर.पी.एफ . ने एक अलग उदाहरण पेश किया है। यह उदाहरण न केवल धैर्य की पराकाष्ठा है बल्कि इंसानियत का अद्भुत नमूना है। दरअसल, हम सभी इस बात से बखूबी वाकिफ  है कि जम्मू-कश्मीर में तैनात जवानों और पत्थरबाजों के बीच क्या रिश्ता है। लगातार पत्थरों की मार सहने के बावजूद सीआरपीएफ  के हर जवान का दिल कश्मीरी युवकों के लिए मोहब्बत से भरा हुआ है। इस बात को साबित करने वाली एक घटना सोपोर से सामने आई है। आपको मालूम होगा कि सोपोर जम्मू-कश्मीर  के उन इलाकों में एक है, जहां पर सीआरपीएफ  सहित अन्य सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थरबाजी की जाती है।

इसी सोपोर के एक गांव में पांच साल पहले मंजूर अहमद मीर के साथ हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी की सारी खुशियां छीन लीण् दरअसलए पांच साल पहले मंजूर अहमद मीर जंगल के रास्ते से अपने घर की तरफ  जा रहे थ। इसी दौरान एक भालू ने मंजूर पर हमला बोल दिया। इस हमले में मंजूर का चेहरा बुरी तरह से जख्मी हो गया। गांववालों की मदद से मंजूर को पास के हॉस्पिटल ले जाया गया। सही समय पर मिले इलाज से मंजूर की जिंदगी तो बच गई लेकिन उसकी एक आंख की रोशनी पूरी तरह से चली गई। वहीं दूसरी आंख में सिर्फ  इतनी ही रोशनी बची थी, जिससे वह अपनी जिंदगी किसी तरह चला सकता था, लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। धीरे-धीरे मंजूर के दूसरे आंख की रोशनी भी जाने लगी। मंजूर की इस हालत को देखते हुए कोई भी लडक़ी उससे शादी करने को राजी नहीं थी। इस बीच मंजूर की मां का भी इंतकाल हो गया। अब मंजूर के घर में उसके वयोव पिता के अलावा कोई नहीं बचा था। पिता की उम्र इतनी हो चली थी कि वह किसी भी तरह से बेटे की मदद नहीं कर सकते थे।

रोटी के पड़ गये थे लाले
वहीं अपनी आंखों से लाचार मंजूर कुछ करने की स्थिति में नहीं बचा था। नौबत यहां तक आ गई कि घर में दो वक्त की रोटी के लाले पडऩे लगे। अब घर के चूल्हे का सहारा पूरी तरह से रिश्तेदारए पड़ोसी और पिता-पुत्र से हमदर्दी रखने वाले लोग बन चुके थेण् घर की ऐसी आर्थिक स्थिति के बीच मंजूर के लिए अपनी आंखों का इलाज करा पाना लगभग असंभव सा था। करीब डेढ़ महीने पहले मंजूर का एक दोस्त उससे मिलने के लिए आया।  मंजूर का यह दोस्त जम्मू-कश्मीर पुलिस में कॉन्स्टेबल है।

दोस्त ने दी सीआरपीएफ से मद्द की सलाह
उसने मंजूर को सलाह दी कि वह सीआरपीएफ  की ‘मददगार’ हेल्पलाइन से संपर्क करे। सीआरपीएफ  उसकी कुछ मदद कर सकती है। दोस्त की यह सलाह मंजूर के लिए उम्मीद की एक किरण की तरफ  थी। उसने अपने दोस्त के मोबाइल से सीआरपीएफ  की मददगार हेल्पलाइन से संपर्क किया। सीआरपीएफ  की मददगार हेल्पलाइन पर मौजूद जवान ने मंजूर को हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। फोन कटने के कुछ मिनटों के बाद सीआरपीएफ की एक टीम मंजूर के घर पहुंच गई। सीआरपीएफ की यह टीम मंजूर को लेकर 92वीं बटालियन में पहुंची।

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ईलाज के लिय भेजा पीजीआई
बटालियन के कमांडेंट दीपक कुमार ने व्यक्तिगत तौर पर मंजूर से मुलाकात की और उसकी हर बात बेहद संजीदगी के साथ सुनी, कमांडेंट दीपक कुमार के निर्देश पर सीआरपीएफ के डाक्टर्स ने मंजूर की आंखों की जांच की। जांच के बाद सीआरपीएफ के डाक्टर्स ने सलाह दी कि ऑपरेशन कर मंजूर के एक आंख की रोशनी वापस लाई जा सकती है, लेकिन यह ऑपरेशन चंडीगढ़ के पीजीआई में ही संभव है। अब चंडीगढ पीजीआई में मंजूर की आंखों का ऑपरेशन कराना कमांडेंट दीपक कुमार के लिए एक चुनौती की तरह था।

हर मद्द का किया वादा
इस चुनौती का सामना करते हुए कमांडेंटी दीपक कुमार ने चंडीगढ़ में तैनात सीआरपीएफ की यूनिट से संपर्क किया। सीआरपीएफ की चंडीगढ़ यूनिट ने मंजूर की हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। जिसके बाद कमांडेंट दीपक ने मंजूर को एक कांस्टेबल के साथ चंडीगढ़ के लिए रवाना कर दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में परीक्षण के बाद डॉक्टर्स ने उसकी आंखों के ऑपरेशन की तारीख तय कर दी। अब चुनौती यह थी कि आंखों के ऑपरेशन में गिरी से गिरी हालत में कुछ लाख रुपए का खर्च तो आ ही जाएगा

वेतन देकर की मद्द
मंजूर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इस खर्च को वहन कर सकें। ऐसे में सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन के जवानों ने तय किया कि वह चंदा करके मंजूर की आंखों का इलाज कराएंगे। सभी जवानों ने अपने वेतन का एक हिस्सा मंजूर के आंखों के ऑपरेशन के लिए दान किया। जिसके बादए चंडीगढ़ पीजीआई में मंजूर की आंखों का सफल ऑपरेशन हो गयाण् ऑपरेशन के बाद सीआरपीएफ  ने करीब 35 दिनों तक मंजूर को अपनी चंडीगढ़ बटालियन में रहने के लिए जगह दी। करीब एक हफ्ते पहले वह कश्मीर लौट आया है।

राजनाथ सिंह ने की तारीफ
मंजूर अहमद मीर अब न केवल अपनी आंख से दुनिया को देख सकता है, बल्कि अपने वयोवृद्ध पिता की देखभाल भी कर सकता है। जम्मू-कश्मीर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन के इस नेक काम की बेहद सराहना की जा रही है। हाल में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सीआरपीएफ के इस मानवीय प्रयास की काफी तारीफ  की।