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शीतला माता का चमत्कारी मंदिर ,, जहां चंबल के डकैत भीं पूजा करने आते थे ,मनोकामना पूर्ति पर चढ़ाते थे पीतल के घंटे

मकड़ाई समाचार ग्वालियर । मां देवी सभी भक्तो का कल्याण बिना भेदभाव के करती हैं। मां तो मां होती है वह अपने बच्चों में कभी भी भेदभाव नही करती। डकैत शब्द सुनते ही भय का अहसास होता हैं। जो समाजिक रुप से तिरस्कृत लोग है।ग्वालियर से महज 20 किमी दूर जंगलो में शीतला माता का प्राचीन मंदिर हैं।मंदिर जंगल में होने के बाद भी यहां पर रोजाना सैंकड़ो श्रद्धालु दर्शन करने आज भी आते है।घने जंगल होने से यहां पर कभी कभी शेर भी नजर आता है।

चंबल के डकैत यहां पूजा करने आते थे
कहा जाता है कि सन 1980-90 के समय  चंबल के इलाके में डकैतों का आतंक था। शीतला माता मंदिर में डकैत पूूजा करने आते थे और उनकी मनोकामना पूरी होने पर यहां पर पीतल का घंटा चढ़ाया करते थे। ये डकैत मां के बहुत बडे़ भक्त थें | इसलिए कभी इस क्षेत्र में डकैती नही की और न कभी किसी श्रद्धालु को परेशान किया।ग्वालियर चंबल के बीहड़ के कुख्यात डकैत मोहरसिंह ,माधोसिंह ,मलखान सिंह ,और दयाराम गडरिया जिनके नाम से लोग कांपते थे।इनका आतंक मप्र,उप्र,राजस्थान तक था। वे यहां पर अपना शीश नवाते थे कुछ डकैत को गरीब असहाय लोगो की मदद करते थें इसलिए लोग इनसे मदद भी मांगते थे।
पुलिस अधिकारी ने भी ली मां की शरण
डकैतो के पकड़ने की मुहिम शामिल एनकाउंटर स्पेशलिस्ट रिटायर्ड पुलिस अधिकारी अशोक भदौरिया के अनुसार मां शीतला का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओ की आस्था का केंद्र है।यहां नवरात्रि विशेष पर्व पर डकैत दयाराम रामबाबू गडरिया गैंग ने मंदिर घंटा चढ़ाकर मां से अभय वरदान मांगा था। इन्हे पकड़ने के लिए पुलिस को भी मां से विनती करनी पड़ी कि इस गैंग का खात्मा होने पर और भी बड़ा घंटा चढ़ायेगी। समाजिक दृष्टिकोण इनका खात्मा जरुरी है। ऐसा ही हुआ मां की कृपा से दुर्दांत डकैत रामबाबू गडरिया गैंग का अशोक भदौरिया की टीम ने खात्मा किया।आज भी बीहड़ चंबल के लोग मां को श्रद्धा से मानते और दर्शन करने आते है। नवरात्रि में दूर दूर सेे भक्त नंगे पैर मां के दर्शनो को आते है। निसंतान दंपत्ति संतान की मनोकामना की पूर्ति के लिए मां का आर्शीवाद लेने आते संतान प्राप्त होने पर घंटा चढ़ाया जाता है। बच्चो की सुरक्षा के लिए यहां पालना है जिसमें उन्हे जलाया जाता है।

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शीतला मंदिर की पौराणिक कथा

ऐसा बताया जाता है कि माता के पहले भक्त गजाधर मौजूद मंदिर के पास ही बसे गांव सांतऊ में रहते थे. वे भिंड जिले के गोहद के पास खरौआ में एक प्राचीन देवी मंदिर में नियमित रूप से गाय के दूध से माता का अभिषेक करते थे. महंत गजाधर की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां कन्या रूप में प्रकट हुईं और महंत से अपने साथ ले चलने को कहा. गजाधर ने माता से कहा कि उनके पास कोई साधन नहीं है वह उन्हें अपने साथ कैसे ले जाएं. तब माता ने कहा कि वह जब उनका ध्यान करेंगे वह प्रकट हो जाएंगी. गजाधर ने सांतऊ पहुंचकर माता का आवाहन किया तो देवी प्रकट हो गईं और गजाधर से मंदिर बनवाने के लिए कहा. गजाधर ने माता से कहा कि वह जहां विराज जाएंगी वहीं मंदिर बना दिया जाएगा. माता सांतऊं गांव से बाहर निकल कर जंगलों में पहाड़ी पर विराजमान गईं. तब से महंत गजाधर के वंशज इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. महंत नाथूराम पांचवीं पीढ़ी के हैं|