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संपादकीय : बरगलाने वाली सियासत

दुष्प्रचार और संकीर्ण स्वार्थों की राजनीति कैसे-कैसे गुल खिलाती है, इसका ताजा उदाहरण है कृषि से जुड़े तीन महत्वपूर्ण विधेयकों का विरोध। जब इन विधेयकों को अध्यादेश के रूप में लाया गया था तो आम तौर पर उनका स्वागत किया गया था, लेकिन अब जब उन्हें कानून का रूप देने की कोशिश की जा रही है तो कुछ दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए संसद के भीतर और बाहर उनके विरोध में खड़े होना पसंद कर रहे हैं।
चूंकि नई व्यवस्था में आढ़तियों और बिचौलियों के वर्चस्व को चुनौती मिलने जा रही है, इसलिए यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इन विधेयकों के विरोध के पीछे वे और उन्हे संरक्षण-समर्थन देने वाले नेता ही हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि इन विधेयकों का सबसे अधिक विरोध उन राज्यों में खास तौर पर हो रहा है, जहां आढ़तियों का वर्चस्व है। राजनीतिक दल किसान हितैषी होने का दिखावा करने के लिए किस तरह एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं, इसका सटीक उदाहरण है हरसिमरत कौर का केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा। इसमें संदेह नहीं कि यह इस्तीफा केवल इसीलिए दिया गया है, ताकि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल स्वयं को कांग्रेस से आगे दिखा सके।

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अभी तक इस बात का रोना रोया जाता था कि देश का किसान यह नहीं तय कर सकता कि वह अपनी उपज कहां और किसे बेचे, लेकिन अब जब किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की छूट दी जा रही है तो यह हल्ला मचाया जा रहा है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? क्या कथित किसान हितैषी दल और संगठन यह चाह रहे हैं कि देश का किसान पहले की तरह दशकों पुराने और कालबाह्य साबित हो रहे मंडी कानूनों और साथ ही आढ़तियों की जकड़न में फंसा रहे? यदि नहीं तो फिर किसानों को अपनी उपज कहीं पर भी बेचने की सुविधा देने की पहल का विरोध क्यों?
किसान हितैषी कदम को किसान विरोधी साबित करने के लिए जिस तरह यह अफवाह फैलाई गई कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म की जा रही है, उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि छल-कपट की राजनीति की कोई सीमा नहीं। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जिस उद्देश्य के लिए मंडियों की स्थापना की गई थी, वे पूरे नहीं हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि मंडियों में किसानों के बजाय आढ़तियों की चलती है। इसके चलते किसान आखिरकार औने-पौने दाम में अपनी उपज बेचने को मजबूर होते हैं। यह हैरानी की बात है कि इस मजबूरी की अनदेखी कर उन विधेयकों का विरोध किया जा रहा है, जिनका उद्देश्य कृषि और किसानों की बेहतरी है। यह किसानों को बरगलाने वाली सियासत के अलावा और कुछ नहीं।