भारत में DAP की कमी का संकट: किसानों की परेशानी को देखते हुए सरकार ने उठाए जरूरी कदम
दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है? हर साल रबी और खरीफ सीजन के दौरान उर्वरकों की कमी से किसानों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर DAP, जो फसलों के लिए बेहद जरूरी है, उसकी कमी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। चलिए, इस रिपोर्ट में समझते हैं DAP की मौजूदा स्थिति, इसके महत्व और इस समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम।
DAP क्यों है इतना जरूरी?
DAP फसलों की बेहतर पैदावार के लिए बेहद जरूरी उर्वरक है। इसमें मौजूद नाइट्रोजन और फास्फोरस पौधों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। नाइट्रोजन जहां पौधों के हरेपन और पत्तियों की ग्रोथ में मदद करता है, वहीं फास्फोरस जड़ों को मजबूत बनाने, तनों को मोटा करने और फूल-फल के उत्पादन में बढ़ोतरी करता है। यही वजह है कि बुवाई के समय ज्यादातर किसान DAP का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन दोस्तों, पिछले कुछ सालों से DAP की भारी कमी किसानों को परेशान कर रही है। इस कमी के पीछे कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारण छिपे हुए हैं।
DAP की कमी के पीछे की वजहें
चीन का निर्यात बंद करना: चीन, जो DAP का बड़ा निर्यातक है, ने घरेलू मांग के चलते उर्वरकों का निर्यात रोक दिया है। इससे भारत में DAP की आपूर्ति पर बड़ा असर पड़ा है।
- भूराजनीतिक तनाव: इज़राइल-हमास संघर्ष और लाल सागर में शिपमेंट बाधाओं के कारण भारत को वैकल्पिक मार्गों से उर्वरक मंगवाना पड़ रहा है। इससे लागत बढ़ गई है।
- कच्चे माल की समस्या: वैश्विक आपूर्ति शृंखला में रुकावटों के चलते DAP उत्पादन के लिए जरूरी कच्चे माल की कमी हो रही है।
DAP की कमी से किसानों की बढ़ती मुश्किलें
दोस्तों, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्यों के किसानों को DAP की कमी का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ रहा है। झज्जर जिले के किसान दिनेश बताते हैं, “हर बार DAP लेने उर्वरक केंद्र जाते हैं, लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ता है।” किसान शिव कुमार का कहना है कि DAP के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े रहना पड़ता है, फिर भी हाथ कुछ नहीं लगता।
सरकार द्वारा तय कीमत 1,350 रुपये प्रति 50 किलो बैग के बजाय किसानों को 250-350 रुपये ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं। यह महंगाई किसानों की लागत बढ़ा रही है और उनकी परेशानी और गहरी हो रही है।
सरकार की ओर से उठाए गए कदम
- सब्सिडी बढ़ाना: सरकार ने DAP पर 3,500 रुपये प्रति टन की विशेष सब्सिडी दी है, ताकि किसानों पर बोझ कम हो।
- दीर्घकालिक समझौते: सरकार ने उर्वरकों की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते किए हैं।
- नैनो-उर्वरकों का बढ़ावा: स्वदेशी नैनो-उर्वरकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये परंपरागत DAP जितने कारगर नहीं हैं।
दोस्तों, DAP की कमी को देखते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनने की सख्त जरूरत है। यूरिया उत्पादन में भारत ने काफी प्रगति की है, लेकिन DAP और एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) के मामले में अब भी भारत आयात पर निर्भर है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए, तो आयात पर निर्भरता 2026 तक 15% तक घट सकती है।
दोस्तों, भारत में DAP की कमी ने यह साफ कर दिया है कि हमें उर्वरकों की नीति में बड़े सुधार करने होंगे। सरकार, किसान और उद्योगों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। अगर आज इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो हमारी खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
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