प्री इक्लेंप्सिया : वर्ल्ड प्री एक्लेंपसिया जागरूकता दिवस पर डॉ. आकांक्षा बघेल ने बताई महत्वपूर्ण जानकारी, प्रेगनेंसी में उच्च रक्तचाप और झटके! क्या है ये प्री इक्लेंप्सिया…
रात के करीब 1 बज रहे थे, लगभग बेहोंशी की हालत में एक परिवार प्रसूता को एमरजेंसी विभाग में दाखिला कराता है, पूछने पर पता चलता है कि महज 2 दिन पहले गर्भवती को झटके भी आए थे, जांच में गर्भ की हलचल और धड़कन नहीं मिल रही थी और मां का ब्लड प्रेशर या रक्त चाप सामान्य से बहुत अधिक था, डॉक्टर तत्काल एमरजेंसी डिलीवरी का निर्णय लेटे हैं, जिसके बाद नवजात और माता दोनों ही ICU में भर्ती होते हैं और ये 24 घंटे दोनों के लिए खतरे भरे हैं। क्या आपको जानकारी है, प्रेगनेंसी या गर्भावस्था के दौरान ऐसी इमरजेन्सी अस्पतालों में आम बात है, जिसका पता बड़ी ही आसानी से शुरुआती पहली तिमाही में ही लगाया जा सकता था जिससे मां और नवजात को इस खतरे से बचाया भी जा सकता था। जी हां मेरी बहनों, ये इमरजेन्सी प्रेगनेंसी में होने वाली विशेष अवस्था प्री इक्लेंप्सिया कहलाती है। मई माह प्री-एक्लेंपसिया अवेयरनेस मन्थ के रूप में मनाया जाता है और २२ मई वर्ल्ड प्री-एक्लेंपसिया डे के रूप में, तो आइए जानते हैं…
प्री इक्लैंप्शिया गर्भावस्था के दौरान विकासिन होने वाली एक गंभीर समस्या है जिसके कारण शिशु एवं माँ को अनेकानेक समस्यायें हो जाती हैं और यहाँ तक कि उनकी जान का भी ख़तरा हो सकता है। इसमें गर्भावस्था के दौरान दूसरी तिमाही में माँ को उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है, जिसके कारण किड्नी तथा अन्य अंगों के ख़राब होने की संभावना होती है। भारतवर्ष एवं साउथ एशिया की महिलाओं में ये कंडीशन यूरोपियन व अमेरिकन महिलाओं की तुलना में अधिक पाई जाती है।
माँ को अक्सर खुद इससे जुड़े लक्षण मालूम ही नहीं चलते, लेकिन परामर्श के समय डॉक्टर इससे जुड़ी दिक्कतों की तरफ आगाह करते हैं। उच्च-रक्तचाप के अलावा प्री इक्लैंप्शिया के अन्य लक्षण हो सकते हैं जैसे- प्लेटलेट्स कम होना, लीवर -एन्जाइम्स में गड़बड़ी, किडनी का ख़राब होना, सर में दर्द रहना, आँखों से दिखने में परेशानी-धुंधलापन, पेट-दर्द या उलटी होना। यदि गर्भ जुड़वा हैं (मल्टीपल प्रेग्नेसी) या मां को पहले से ही या प्रेगनेंसी के बाद डायबटीज़ (मधुमेह) या हाई-ब्लड-प्रेशर की समस्या हो तो इस समस्या (प्री इक्लेंप्सिया) के होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
प्री इक्लैंप्शिया का मूल कारण प्लसेन्टा (आंवल) के विकास से जुड़ा है, प्रेग्नन्सी के शुरूआत में ही प्लसेन्टा -जो माँ और बच्चे के बीच की पोषक कड़ी है उसमें नई ब्लडवेसल यानि धमनियों का निर्माण होने लगता है जिससे बढ़ते हुए बच्चे को पर्याप्त मात्र में पोषण मिलता रहे आसानी से। लेकिन प्री-एक्लेंपसिया में वही धमनियाँ ढंग से बन नहीं पातीं- कार्य नहीं कर पातीं। इस त्रुटि के कारण कुछ हानिकारक पदार्थ माँ के रक्त में सम्मिलित हो जाते हैं जो की विभिन्न अंगों को नुक़सान पहुँचाते हैं। माँ के लिवर, किडनी, दिमाग पर असर पड़ सकता है, धुंधलापन की समस्या आ सकती है । माँ को मिर्गी का दौरा भी आ सकता है। माँ के रक्त के जमने की क्षमता(clotting mechanism) पर भी असर होता है, जिससे अंदरूनी अंगो में रक्त स्राव की संभावना होती है।
इतना ही नहीं, भ्रूण को कम रक्त पहुँचाने के कारण बच्चा कमजोर रह जाता है। यह स्थिति कईं बार माँ और शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इसका उपचार जल्दी डिलेवरी (ज़्यादातर ऑपरेरेशन द्वारा) ही होता है। समय से पहले डिलेवरी (सतमसी/आठमासी) की वजह से शिशु को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
प्री-इक्लैंप्शिया से पीड़ित माँ और शिशु दोनों को कई सालों बाद उच्च रक्त चाप, किडनी खराब होना, मोटापा, डायबिटीज एवं स्ट्रोक का ख़तरा भी बना रहता है, आए दिन ऐसे मरीजों की संख्या अस्पताल इमरजेन्सी में बढ़ती भी जा रही है।
क्या इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है?
अच्छी बात यह है कि 12 हफ्ते के आसपास यही गर्भ की पहली तिमाही में होने वाली सोनोग्राफी में मां की विशेष नसें जिसे यूटेराइन आर्टरी कहते हैं, जो गर्भ में पोषण पहुंचाती है, कि जांच से आपके रेडियोलॉजिस्ट यह पता लगा सकते हैं कि कहीं माँ को प्री इक्लैंप्शिया होने की संभावना तो नहीं है, साथ ही आपकी लंबाई, कद काठी, वजन और आपसे जुड़े कुछ प्रश्न जैसे उम्र, पहला गर्भ है या दूसरा, पिछली प्रेगनेंसी की जटिलता, ब्लड प्रेशर और शुगर इत्यादि कि जानकारी के आधार पर आसानी से पता लगाया जा सकता है, कि यह हाई रिस्क या जोखिम वाली प्रेगनेंसी तो नहीं, जिसकी स्कॉरिंग जोखिम के दायरे में आती है, उन्हें बचाव के लिया डाक्टर की सलाह द्वारा इलाज दिया जाता है, जिससे प्लसेन्टा से जुड़ी धमनियों का विकास सुचारू रूप से हो सके और बच्चे को सही मात्र में पोषण मिलता रहे।
इस जरूरी जाँच की बदौलत हम काफ़ी हद तक माँ और बच्चे के जीवन को सरल और सुरक्षित बना सकते हैं, बच्चे को लो-बर्थ वैट यानि कमजोर होने से रोक सकते हैं, समय से पहले डेलीवरी और अनावश्यक ऑपरेशन से बचा जा सकता है, साथ ही साथ प्री इक्लैंप्शिया से जुड़ी जीवन भर की दिक्कतों से भी माँ और बच्चे को बचा सकते हैं । जानकारी के लिया बता दूं यह रिस्क असेसमेंट हमारे शहर में उपलब्ध भी है, जिसके लिए अलग से चार्ज नहीं लगाता। जरूरी है कि आप पहली तिमाही (11 से 13 हफ्ते के बीच) की सोनोग्राफी करवायें और प्री इक्लैंप्शिया स्क्रीनिंग का लाभ उठायें।
डॉ आकांक्षा बघेल –
राष्ट्रीय सह संचालिका, इंडियन रेडियोलॉजिकल एवं इमेजिंग एसोसिएशन, संरक्षण प्रोग्राम राष्ट्रीय