प्रदेश का पहला सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र: नेमावर मे चक्रवर्ती विवाह,आदि पुराण में इस पद्धति का उल्लेख, खातेगांव के मितेश और आयुषी परिणय सूत्र में बंधे,
अनिल उपाध्याय खातेगांव
खातेगांव के निर्मल कासलीवाल के बेटे मितेश और राजेश पोरवाल की बेटी आयुषी का जैन धर्म के आदि पुराण में वर्णित चक्रवर्ती विवाह हुआ। दोनों खातेगांव के ही रहने वाले हैं। देवास जिले का यह पहला ओर और प्रदेश का सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र मैं होने वाला पहला विवाह है।यह विवाह पंचबालयती-त्रिकाल चौबीसी चक्रवर्ती विवाह सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र के पंचबालयती-त्रिकाल चौबीसी जिनालय में हुआ।
इस दिन दुल्हा-दुल्हन दोनों ने निर्जला उपवास रखा। वर मितेश ने श्रीजी के अभिषेक किए। वर-वधू और परिजनों ने मंडल विधान-पूजन की। निर्यापक श्रमण मुनिश्री वीरसागरजी के मंगल आशीर्वाद से पंडित शुभम जैन इंदौर के निर्देशन में विवाह को पूर्ण कर नए जीवन में प्रवेश किया। अब ये दोनों 7 दिन संयमित रहकर अलग-अलग तीर्थक्षेत्रों की यात्रा कर दर्शन-पूजन करेंगे। मुनि आर्यिकासंघ का आशीर्वाद लेंगे। विवाह के पहले भी दोनों ने परिवार के साथ मुनिश्री प्रमाण सागर, निर्वेग सागर, निर्मद सागर, संधान सागर समेत अन्य मुनि महाराजों को आहार दिया।
विवाह के दिन दोनों ने निर्जल उपवास रखा।
पंडित शुभम जैन ने बताया कि जैन धर्म में हजारों वर्ष पूर्व
चक्रवर्ती विवाह होते थे। इस पद्धति से होने वाले विवाह समय के साथ-साथ लुप्त होते चले गए। विवाह में मंदिर में सबसे पहले भगवान के अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, विधान हवन, सात फेरे आदि क्रियाएं होती हैं। अंत में सात फेरे भगवान के चारो ओर परिक्रमा देकर पूर्ण किए जाते हैं। इस विवाह में वर, वधू भोजन में भी शुद्धि का भोजन ही ग्रहण करते हैं अथवा अपने शरीर के अनुकूल व्रत या उपवास भी कर सकते हैं। कंदमूल आदि का भोजन, रात्रि भोजन ऐसे विवाह में वर्जित होता है। इस विवाह का उल्लेख आदिपुराण में मिलता है। बहू अपने ससुराल में पुराणों को लेकर ग्रंथ/प्रवेश करती हैं। ससुराल पक्ष में वर की मां भी अपनी बहू को ग्रंथ/पुराण आदि देकर अपने घर में मंगल प्रवेश कराती हैं।
सिद्धोदय ट्रस्ट की ओर से जिले में प्रथम बार हुए चक्रवर्ती
विवाह पर वर-वधू का सम्मान किया गया। कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि ऐसे विवाह के द्वारा लोगों में आधुनिकता की चकाचौंध से दूर जीवन में धर्म मय जीवन की ओर बढ़ने की भी प्रेरणा भी मिलती है। दूसरे लोगों को प्रेरणा मिलती है।
खातेगांव के निर्मल कासलीवाल के पुत्र मितेश और राजेश पोरवाल की पुत्री आयुषी का मंगलवार को जैन धर्म के आदि पुराण में वर्णित चक्रवर्ती विवाह हुआ। देवास जिले का पहला चक्रवर्ती विवाह सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र के पंचबालयती एवं त्रिकाल चौबीसी जिनालय में सम्पन्न हुआ। वर-वधू दोनों खातेगांव के ही रहने वाले हैं। विवाह के दिन दोनों ने निर्जला उपवास रखा। वर मितेश ने श्रीजी के अभिषेक किए। वर –वधू और परिजनों ने मंडल विधान –पूजन की।
आचार्य श्री विद्यासागर जी के परम शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि वीरसागर जी के मंगल आशीर्वाद से पंडित शुभम जैन इंदौर के निर्देशन में इस मंगलमय विवाह को पूर्ण कर नए जीवन में प्रवेश किया। अब ये दोनों 7 दिन संयमित रहकर अलग–अलग तीर्थक्षेत्रों की यात्रा कर दर्शन–पूजन करेंगे। मुनि–आर्यिकासंघ का आशीर्वाद लेंगे। विवाह के पूर्व भी दोनों ने परिवार के साथ मुनिश्री प्रमाण सागर, निर्वेग सागर, निर्मद सागर, संधान सागर सहित अन्य मुनि महाराजों को आहार दिया और आशीर्वाद लिया था।
चक्रवर्ती विवाह क्या होता हैं:
पुनीत जैन ने बताया कि जैन धर्म में हजारों वर्ष पूर्व चक्रवर्ती विवाह हुआ करते थे। इस पद्धति से होने वाले विवाह समय के साथ-साथ लुप्त होते चले गए। इस विवाह में मंदिर में सबसे पहले भगवान के अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, विधान हवन, सात फेरे आदि क्रियाएं होती हैं। अंत में सात फेरे भगवान के चारो ओर परिक्रमा देकर पूर्ण किए जाते हैं। इस विवाह में वर, वधू भोजन में भी शुद्धि का भोजन ही ग्रहण करते हैं अथवा अपने शरीर के अनुकूल व्रत या उपवास भी कर सकते हैं। कंदमूल आदि का भोजन, रात्रि भोजन ऐसे विवाह में वर्जित होता है। इस विवाह का उल्लेख आदिपुराण में मिलता है। बहू अपने ससुराल में पुराणों को लेकर ग्रंथ/प्रवेश करती हैं। ससुराल पक्ष में वर की मां भी अपनी बहू को ग्रंथ/पुराण आदि देकर अपने घर में मंगल प्रवेश कराती हैं।
सिद्धोदय ट्रस्ट की ओर से जिले में प्रथम बार हुए चक्रवर्ती विवाह पर वर–वधू का सम्मान किया गया। कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि ऐसे विवाह के द्वारा लोगों में आधुनिकता की चकाचौंध से दूर जीवन में धर्म मय जीवन की ओर बढ़ने की भी प्रेरणा भी मिलती है। दूसरे लोगों को प्रेरणा मिलती है।
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