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एकाग्र पहचान समारोह – बोलियों के लोक नाट्यों कार्यक्रम में कुकरावद के कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुति

कुकरवाद सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भुआणा अंचल का गाँव है। यहाँ के युवा पूरी निष्ठा और लगन के साथ संस्कृति और पर्यावरण क्षेत्र में उत्साह के साथ काम कर रहे हैं

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मकड़ाई समाचार जबलपुर हरदा। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा जबलपुर में बोलियों के लोक नाट्यों पर एकाग्र पहचान समारोह का तीन दिवसीय आयोजन 10 से 12 सितंबर,2022 तक मानस भवन जबलपुर में किया गया। समारोह में प्रदेश एवम अन्य राज्यों की बोलियों पर केंद्रित लोकनाट्यों की पारम्परिक प्रस्तुतियां हुई।

समापन दिवस 12 सितम्बर को प्रदेश के समृद्ध अंचल भुआणा की लोकनाट्य शैली गम्मत पर एकाग्र संत सिंगाजी की लोक को प्रेरणा पर एकाग्र “खेती खेड़ो हरिनाम की” प्रस्तुति श्री अंशुल दुबे नरसिंहपुर के निर्देशन में हरदा जिले के ग्राम-कुकरावद के कलाकारों के साथ प्रस्तुत की गई। यह प्रस्तुति एक संगीतमय नाट्य प्रस्तुति है जिसमें व्यक्ति का हृदय परिवर्तन, गुरु की व्यक्ति के जीवन में उपयोगिता और महिमा एवम जीवन में गुरु के महत्व को उजागर किया गया है।इसकी कहानी शुरू होती है एक ऐसे व्यक्ति के जीवन से जो बुरी संगत के कारण लिप्सा में बुरे कृत्य चोरी आदि करने लगता है पर हर बार जब भी वह चोरी करता है उसके मन में एक गलत कृत्य होने का भाव जरूर आता है। कहानी आगे बढ़ती है और वह व्यक्ति चोरी करने एक संत के आश्रम पहुंचता है, जहां उसका ह्रदय आश्रम के फकीर संत की बात सुनकर परिवर्तित होता है और उसे गुरु ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह सत्कर्म में लग जाता है।नाटक में भुआणा अंचल शैली में श्री संत सिंगा जी एवम नारादी शैली के पारंपरिक गीतों को शामिल किया गया है जो की नाटक को और अधिक रोचक, बोधगम्य और संप्रेषणीय बनाते हैं। नाटक का लेखन ग्राम के बुजुर्गों से सुनी कहानियों को केंद्र में रखकर किया गया है। इसका निर्देशन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के छात्र श्री अंशुल दुबे द्वारा किया गया है, जो उन्हें विद्यालय द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
ग्राम कुकरवाद सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भुआणा अंचल का गाँव है। यहाँ के युवा पूरी निष्ठा और लगन के साथ संस्कृति और पर्यावरण के क्षेत्र में उत्साह के साथ काम कर रहे हैं। संस्कृति के क्षेत्र में श्री विकास शुक्ला जो एक परंपरा के निष्ठ गायक कलाकार हैं और पर्यावरण के क्षेत्र में पूरे गाँव के युवा एक साथ होकर काम कर रहे हैं। अपने बुजुर्गों से परम्परा का संगीत सीख रहे हैं तथा उनके अनुभवजन्य ज्ञान से पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं।
इस शैली को जबलपुर के रंगकर्मियों द्वारा पहिली बार देखा गया। सभी दर्शकों ने प्रस्तुति के संगीत, अभिनय की कसावट और प्रेरक संवादों की भूरी-भूरी प्रशंसा की।