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धर्म और जाति के अंतर कोे समाप्त करने के लिए समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए – न्यायाश्रय

मकड़ााई समाचार इंदोर। न्यायाश्रय वकीलो की संस्था नेे राष्ट्रपति  और राज्यपाल के नाम ज्ञापन देकर मांग की है देश में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए। संस्था अध्यक्ष पंकज बाधवानी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी कई बार देेश में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने जरुरत बताई हैं। दिल्ली हाई्रकोेर्ट नेे भी इस संबंध में महत्वूूर्ण टिप्पणी की गई है। मा. हाईकोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है,धर्म और जाति केे अंतर को समाप्त करने के लिए लागू होना चाहिए। कानूनी क्षेत्र में काम करनेे वाली संस्था न्यायाश्रय नेे इस संबंध में  राष्ट्रपति ,राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया हैं।
श्री वाधवानी ने कहा कि समान नागरिक संहिता देश के धर्म निरपेेक्ष संविधान का धर्म निरपेक्ष विचार है। कुछ राजनीतिक दल और कट््टरपंथियोे नेे संकीर्ण मानसिकता दिखाते इसेे दमनकारी बता रहेे है जबकि सच यह है कि सभी के लिए कल्याणकारी है।। इससे देश सभी समुुदाय का विकास होेगा।

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समान नागरिक संहिता  –   भारत के संविधान के भाग चार में राज्य के नीति निर्देशक तत्व दिए गए हैं। इस भाग में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को किस दिशा में कार्य करना है इस बारे में निर्देश दिए गए हैं जो कि संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक दर्शाए गए हैं। इनमें से कई अनुच्छेद तो लागू हो चुके हैं लेकिन अनुच्छेद 44 जिसमें राज्यों को यह निर्देश दिया गया है कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करें, वह आज तक लागू नहीं हुआ है। यही वजह है कि हमारे देश में अलग-अलग धर्म के पर्सनल ला चल रहे हैं। एक ही देश में फैमिली ला के अंतर्गत अलग-अलग रीति रिवाज चल रहे हैं। इसके चलते अलग-अलग धर्म में आस्था रखने वालों में मनमुटाव की आशंका बनी रहती है।