मकड़ाई एक्सप्रेस 24 जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के एर्राकोट में मतांतरित सेमलाल को मौत के बाद अपने गांव में दफन होने के लिए दो गज जमीन नहीं मिली।
एक दिन पहले इसी क्षेत्र में अलवा गांव की मतांतरित महिला को भी गांव में दफनाने नहीं दिया गया था। प्रशासन ने गांव में विवाद बढ़ने से रोकने, पुलिस की उपस्थिति में गांव से 50 किमी दूर जगदलपुर के इसाई कब्रिस्तान में दोनों के शव को दफनाया। बस्तर के छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज अध्यक्ष दशरथ कश्यप का कहना है कि मतांतरण से बस्तर में आदिवासी संस्कृति के नष्ट होने का खतरा होने लगा था। इसे रोकने आदिवासी ग्रामों में ग्राम सभा में प्रस्तावत पारित कर कड़े कानून पारित किए जा रहे हैं।मतांतरित सेमलाल और आदिवासी महिला, दोनों ही बस्तर के मूलनिवासी आदिवासी हैं, पर इनके परिवार मतांतरित हो गए थे। उन्हीं की तरह एर्राकोट के भीमापारा, पांडुपारा, खासपारा व अन्य नौ पारा के करीब 200 परिवार मतांतरित हो चुके हैं। इसके बाद से ये परिवार गांव के देवी-देवता को नहीं मानते हैं। गांव के त्योहार, उत्सव, पूजा में चंदा भी नहीं देते हैं। गांव के देवगुड़ी की जगह चर्च जाने लगे हैं। इसी तरह बस्तर के सैकड़ों गांव में हजारों आदिवासी परिवार मतांतरण के बाद अपनी संस्कृति से दूर हो चुके हैं, लेकिन अब बस्तर के आदवासी इस मतांतरण के विरोध में खड़े होने लगे हैं।मतांतरित सेमलाल और आदिवासी महिला, दोनों ही बस्तर के मूलनिवासी आदिवासी हैं, पर इनके परिवार मतांतरित हो गए थे। उन्हीं की तरह एर्राकोट के भीमापारा, पांडुपारा, खासपारा व अन्य नौ पारा के करीब 200 परिवार मतांतरित हो चुके हैं। इसके बाद से ये परिवार गांव के देवी-देवता को नहीं मानते हैं। गांव के त्योहार, उत्सव, पूजा में चंदा भी नहीं देते हैं। गांव के देवगुड़ी की जगह चर्च जाने लगे हैं। इसी तरह बस्तर के सैकड़ों गांव में हजारों आदिवासी परिवार मतांतरण के बाद अपनी संस्कृति से दूर हो चुके हैं, लेकिन अब बस्तर के आदवासी इस मतांतरण के विरोध में खड़े होने लगे हैं।