क्या पितरों की शांति के लिए दानवीर कर्ण को भी करना पड़ा था श्राद्ध -ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
महादानी होने के बाद भी ऐसा क्या हुआ जो कर्ण को भी करना पड़ा श्राद्ध जानिए ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री जी से हिन्दु धर्म के लगभग सभी लोग महाभारत व उसके एक-एक पात्र से परिचित होंगे ही और सभी यह भी जानते होंगे कि महाभारत में कर्ण नाम के जो महाबली योद्धा थे, वे वास्तव में पांडवों की माता कुंती के सबसे पहले पुत्र थे। महाभारत काल के सबसे बड़े दानवीरों में उनका नाम सर्वोपरि था। हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार महावीर कर्ण हर रोज गरीबों और जरूरतमंदों को स्वर्ण व कीमती चीजों का दान किया करते थे। लेकिन महाभारत के युद्ध के दौरान जब उनकी मृत्यु हुई और वे स्वर्ग पहुंचे तो भोजन के रूप में उन्हें हीरे,मोती, स्वर्ण मुद्राएँ व रत्न आदि खाने के लिए परोसे गए। इस प्रकार का भोजन मिलने की उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, इसलिए इस तरह का भोजन देख उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा और उन्होंने स्वर्ग के अधिपति भगवान इंद्र से पूछा, ”सभी लोगों को तो सामान्य भोजन दिया जा रहा है, तो फिर मुझे भोजन के रूप में स्वर्ण,आभूषण, रत्नादि क्यों परोसे गए हैं?” कर्ण का ये सवाल सुनकर इंद्र ने कर्ण से कहा, ”इस बात में कोई संदेह नहीं है |
कि आप धरती के सबसे बडे दानवीरों में भी सर्वोपरि थे और आपके दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया, लेकिन आपने कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर खाने का दान नहीं किया। इसीलिए आपके दरबार में आया हुआ हर जरूरतमंद आपसे सन्तुष्ट व तृप्त था, लेकिन श्राद्ध के दौरान आपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया और उनकातर्पण किया। ऐसी मान्यता है कि इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है। ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री जी बताते है कि इस दिन कौवो को आमंत्रित करके उन्हें भी श्राद्ध का भोजन कराना चाहिए, क्योंकि हिंदू पुराण में कौए को देवपुत्र कहा गया है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार सबसे पहले इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण किया था। त्रेता युग की घटना के अनुसार जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान राम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी, जयंत ने क्षमा मांगी तब राम ने वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। हिन्दू परंपरा को मानने वाले लोग भारत के अलावा विदेशों में कहीं भी हों वे अपने पूर्वजों को याद करने के लिए पितृ पक्ष को जरूर मनाते हैं।
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