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छत्तीसगढ मे सदाशिव की अदभुत प्रतिमा अंगो पर अनेक जीव जन्तु,  ऐसी दुर्लभ प्रतिमा अभी तक कही नही मिली

मकडाई एक्सप्रेस 24 बिलासपुर।अखंड ब्रह्मांड मे आदिकाल से भगवान सदाशिव की भक्ति पूजन होता रहा है इसके प्रमाण खुदाई मे निकलने वाली मूर्तियाँ है। ऐसे रुद्रशिव की विशाल और अखंड ब्रम्हांड समाहित प्रतिमा की जानकारी आप को देते है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से 26 किलोमीटर दूर मनियारी नदी के पर ताला गांव मे विराजित भोलेनाथ के रूद्रशिव की प्रतिमा वास्तु और मूर्तिकला के बेजोड़ है।देवरानी-जेठानी मंदिर के नाम से इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस मंदिर का इतिहास किसी चमत्कार से कम नहीं है।

देवाधिदेव का रौद्र रूप में है प्रतिमा

राजधानी रायपुर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय में रूद्रशिव स्वरूप की हूबहू प्रतिमा रखी गई है। यह प्रतिमा ओरिजनल प्रतिमा के जैसे ही है. मूर्ति की बनावट, ऊंचाई सब ओरिजनल के समान है। संचनालय पुरातत्व विभाग के पुरातत्त्ववेत्ता प्रभात कुमार सिंह के अनुसार महंत घासीदास संग्रहालय में रूद्रशिव की प्रतिकृति रखी गई है. यह मूर्ति बहुत ही दुर्लभ कही गई है, जो शिव के रौद्र स्वरूप को प्रकट करती है. इसमें शिव के रौद्र स्वरूप के साथ विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु उनके प्रत्यम्भों में प्रदर्शित किए गए हैं, जो किसी भी साहित्यिक साक्ष्य से उनका मेल नहीं खाता है।इसीलिए इसे भारतीय मूर्ति विज्ञान से पहेली माना गया है।इसलिए यह दुर्लभ मूर्ति न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

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प्रतिमा के अंगों पर जीव-जन्तुओं के चित्र उकेरे

प्रतिमा मे शरीर के अलग-अलग अंगों पर जीव जंतुओं को भी उकेरा गया है। शिव की प्रतिमा के सिर के ऊपर दो शेषनागों को पगड़ी के रूप में दिखाया गया है. माथे से लेकर नाक के अग्र भाग पर लगे तिलक में छिपकली बना हुआ है।यह भय व विष का कारक है।आंख की पलक मेंढ़क से बना हुआ है, जो विभत्सा का प्रतीक है. आंख का गोलक मुर्गी अंडे से उकेरी गई है।दोनों कान मयूर से बना हुआ है। दो मछलियों से मूंछ बनाया गया है. ठुड्डी केकड़े से बनाया गया है. रूद्रशिव के दोनों कंधों में मगरमच्छ को विराजित किया गया है. दोनों वक्षों में पुरुष की मुखाकृति है।पुरुष के मन की गतिमान अवस्था को दर्शाया गया है। पेट के नीचे जंघों पर महिला की मुखाकृति उसकी सामंजस्य गति को दर्शाता है।कमर के नीचे दाईं व बाईं तरफ कागराज और गरूड़ की आकृति बनाई गई है. यह भी गति का प्रतीक है। दोनों घुटनों पर बाघ व उंगलियों में सर्प का श्रृंगार किया गया है।

कैसे मिली थी शिव प्रतिमा

पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1984 में मनियारी नदी के किनारे ताला गांव में खोदाई प्रारंभ की थी, जो तीन साल तक चली थी. वर्ष 1987 में रूद्रशिव की विशाल प्रतिमा के साथ ही शिव गौरी व नौग्रह की प्रतिमाएं भी निकली. वर्ष 1992 तक यहां विभाग की देखरेख में खोदाई की गई है. वर्तमान में इसे पुरातत्व स्थल के रूप में पुरातत्व विभाग द्वारा विकसित किया जा रहा है. पर्यटन केंद्र के रूप में इसकी पहचान बनी है. शिवरात्रि और अन्य विशेष मौकों पर यहां पूजा अर्चना भी होती है।