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भगोरिया आदिवासी युवक युवतियो का आनन्दोत्सव : भगोरिया आदिवासी संस्कृति का परिचायक है।

प्रकृति मे बसंत की बहार महुए की खुशबू पलास के फूलो की रंगत के साथ आता भगोरिया पर्व जिसमे आदिवासी युवक युवती एक दुसरे को रिझाने का प्रयास करते है प्रणय निवेदन के बाद धूमधाम से विवाह होता।आइये जानते भगोरिया के बारे में,,

मकड़ाई एक्सप्रेस 24 हरदा। मप्र मूलतः आदिवासियो की संस्कृति की जन्मस्थली रही है।जिसका प्रमाण रामायण और महाभारत काल में भी मिले है। प्रदेश के खरगोन,बड़वानी अलीराजपुर,झाबुआ जिले का भगोरिया पर्व विशेष रूप से आज भी मनाया जाता है।

भगोरिया पर्व का इतिहास

भगोरिया कब और क्यों शुरू हुआ भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार, भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजा कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में विशाल मेले और हाट का आयोजन करना शुरू किया. धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्ही का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि इन मेलों में युवक-युवतियां अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं इसलिए इसे भगोरिया कहा जाता है।

प्रकृति भी करती अपना श्रृंगार

जब एक ओर ठंड का मौसम जा रहा और गर्मी का आगमन हो रहा होता है।ऐसे में आदिवासी अंचलो मे चारो और पलास के लाल पीले फूल खिले होते आम ,बेर और महुये की खुश्बू से जंगल महकता है तब आदिवासी किशोर किशोरियो के हृदय मे प्रेम के अंकुरण होने लगता है।जो भगवान शिव पार्वती के विवाह ( शिवरात्रि) के बाद से आपने जीवन साथी की तलाश मे लग जाते है। फूल फलों से महकता जंगल खुशबू से सराबोर हवाओं के झोंकों के साथ आदिवासियों का लोकप्रिय पर्व भगोरिया होलिका दहन से सात दिन पहले प्रारंभ होता है।

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होली के 7 दिन पूर्व हाट बाजारो में विशेष खरीदी

आदिवासी अंचलों में होली पर्व के सात दिन पूर्व से जो बाजार लगते है।भगोरिया हाट कहते है।

भगोरिया पर्व आदिवासियों का महत्वपूर्ण त्यौहार है. इसलिए भगोरिया प्रारंभ होने से पूर्व के साप्ताहिक हाट में इस त्योहार को मनाने के लिए अंचल के आदिवासी ढोल, मांदल, बांसुरी, कपडे़, गहने एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी करते है. साज-सज्जा का सामान खरीदते है। इसीलिए इन्हें त्योहारिया हाट कहा जाता है.

 

क्या है भोगर्या अथवा भगोरिया

भगोरिया को लेकर लोगो का मानना है कि ये पूर्व प्रचलित पारंपारिक प्रणय पर्व हैं।इन्ही हाट बाजारों में आदिवासी युवक-युवतियां एक दूसरे को पसंद करते हैं।इसी दौरान बाजार में एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। युवक पहले युवती को गुलाल लगाता है, यदि युवती को युवक पसंद आ जाता है तो वो उसे गुलाल लगाती है।यदि युवक युवती को पसंद नहीं आता है तो गुलाल को पोंछ देती है।आपसी सहमती पर दोनों एक दूसरे के साथ भाग जाते हैं। गांव वाले भगोरिया हाट में बने प्रेम प्रसंग को विवाह सूत्र में बांधने के लिए दोनों परिवारों से बातचीत करते है और होलिका दहन हो जाने के बाद विवाह संपन्न करवाये जाते है।

भगोरिया हाट मे सजधज कर आती आदिवासी किशोरियां

भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढू्ंढने आते हैं।इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है इसी तरह सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है. यदि लड़की पान खा ले तो, हां समझा जाता है। भगोरिया हाट में झुले चकरी, पान, मीठाई, सहित श्रृंगार की सामग्रियां, गहनों आदि की दुकानें लगती हैं, जहां युवक एवं युवतियां अपने अपने प्रेमी को वैलेंटाइन की तरह गिफ्ट देते नजर आते हैं।