नई दिल्ली। गलवन घाटी में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद भारतीय सेना द्वारा रूल्स ऑफ इंगेजमेंट (आरओई) में एक महत्वपूर्ण बदलाव कर दिया गया है। इसके तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात कमांडरों के लिए असमान्य समय में हथियारों के इस्तेमाल पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर दो वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सामरिक स्तर पर ऐसी स्थित से निपटने के लिए सैनिकों को कार्रवाई की पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है।
ऊपर दिए गए अधिकारियों में से एक ने कहा कि कमांडरों अब हथियारों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध से बाध्य नहीं होंगे। असाधारण स्थितियों से निपटने के लिए कमांडरों के पास उपलब्ध सभी संसाधनों का वे पूरी तरह से इस्तेमाल कर सकेंगे और उन्हें दुश्मन की प्रतिक्रिया देने का पूर्ण अधिकार होगा। आरओई में संशोधन भारतीय और चीनी सैनिकों द्वारा 15 जून को गलवन घाटी में 45 वर्षों में अपने पहले घातक संघर्ष में शामिल होने के बाद किया गया है।
बताते चलें कि पहले से पूरी तैयारी से आए चीनी सैनिकों ने धोखे से हमला कर एक कमांडिंग अफसर सहित 20 सैनिकों को शहीद कर दिया था। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 40 से 45 चीनी सैनिकों को मार गिराया। साथ ही एक चीनी कर्नल को बंधक भी बना लिया था। बताते चलें कि शुक्रवार को एक सर्वदलीय बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सेना को सीमा के साथ आवश्यक कदम उठाने की स्वतंत्रता दी गई थी और भारत ने कूटनीतिक माध्यम से अपनी स्थिति (चीन को) बता दी थी।
ROE में बदलाव के साथ अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जो भारतीय कमांडरों की क्षमता को LAC पर आवश्यक कार्रवाई के लिए सीमित करता है। चीनी सैनिकों द्वारा नियोजित क्रूर रणनीति से निपटने के लिए आरओई को संशोधित किया गया है। सात घंटे की गलवन वैली की झड़प ने पहली बार 1975 के बाद से चीनी सैनिकों से जुड़ी एक घटना में भारत को इतने घातक नुकसान का सामना करना पड़ा है। सीमा के साथ हिंसक झड़पों की एक प्रभावी संख्या बढ़ने के बाद आरओई में परिवर्तन करना जरूरी हो गया था। 15 जून की झड़प के बाद अपने सैनिकों की प्रतिक्रिया को सेना ने आखिरकार सीमित नहीं करने का फैसला किया है।
पूर्वी लद्दाख में 15 जून की झड़प से पहले पैंगोंग त्सो (5-6 मई) और गलवन घाटी (मई के मध्य के आस-पास) में दो हिंसक झड़पें हुईं। सभी मौकों पर चीनी सैनिक भारी संख्या में आए और हमारे सैनिकों के साथ लोहे की रॉड और कील-जड़े डंडों के साथ हमला किया। हमारे सैनिकों ने निडर होकर लड़ाई लड़ी, लेकिन आरओई को फिर से संसोधित करने की जरूरत थी।
बताते चलें कि भारत और चीन के बीच साल 1996 और 2005 के सीमा समझौते में आमने-सामने की गोलीबारी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। नवंबर 1996 में भारत और चीन द्वारा हस्ताक्षरित LAC के साथ सैन्य क्षेत्र में विश्वास निर्माण के उपायों पर समझौते के अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि दोनों पक्ष गोली नहीं चलाएंगे।