मकड़ाई समाचार भोपाल। सत्ताधारी बीजेपी के विधायक को छतरपुर के कलेक्टर से मिलने के लिए ढाई घंटे उनके बंगले के बाहर धरना देना पड़ा। इंतजार के बाद बाहर आए कलेक्टर साहब ने विधायक जी को खड़े-खड़े बात करके टरका दिया।
दरअसल, विधानसभा में भले ही विधायकों को मुख्य सचिव से ऊपर प्रोटोकॉल दर्जा देने की बात होती हो लेकिन किसी जनप्रतिनिधि की फजीहत का इससे बड़ा उदाहरण नहीं मिलेगा। छतरपुर के चांदला से विधायक राजेश प्रजापति इलाके की जनसमस्याओं को लेकर कलेक्टर शीलेन्द्र सिह से मिलने पहुंचे थे। छतरपुर पहुंचकर उन्होंने फोन लगाया। कलेक्टर साहब ने फोन नहीं उठाया। बंगले पर पहुंचे तो संतरी ने मना कर दिया कि कलेक्टर साहब है नहीं। हालांकि थोड़ी देर बाद ही बंगले के अंदर से क्षेत्र के आरटीओ बाहर आते दिखाई दिए।
नाराज विधायक बंगले के बाहर धरना देकर बैठ गए। ढाई घंटे तक धरना चलता रहा और यह खबर 300 किलोमीटर दूर भोपाल मीडिया के माध्यम से पहुंच गई। उसके बाद कलेक्टर साहब बाहर आए और बीजेपी विधायक से बोले ‘बताइए क्या काम है।’ बीजेपी विधायक ने बंगले के अंदर चलकर बात करने का आग्रह किया तो बोले ‘नहीं, यही बताइए। जल्दी बताइए मेरे बच्चे अंदर हैं।’
विधायक ने क्षेत्र में राजस्व पखवाड़े के तहत हो रही नामांतरण सुधारों में लापरवाही का मुद्दा उठाया तो कलेक्टर ने कहा कि ‘लिखकर दीजिए। मौखिक रूप से में कैसे सुन लूंगा।’ विधायक कहते रहे और कलेक्टर जवाब देते रहे। अंत में कलेक्टर बंगले के अंदर चले गए। अब सवाल यह है कि जब सत्ताधारी पार्टी के विधायक के साथ इस तरह का सलूक हो रहा है तो फिर किसी अन्य पार्टी के जनप्रतिनिधि या आम आदमी की बिसात ही क्या। हो सकता कि यह मुद्दा विधानसभा के आगामी सत्र में उठे और एक बार फिर विधायकों को सम्मान देने के निर्देश विधानसभा अध्यक्ष की ओर से जारी किए जाएं। लेकिन पालन होगा या नहीं अपने आप में एक बड़ा सवाल है।