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श्रीमद भागवत कथा हमें जीने की राह बताती है पंडित कमल किशोर!

 के  के यदुवंशी 

सिवनी मालवा। नर्मदापुरम हरदा बाईपास हनुमान धाम दूधियाबढ़ मंदिर के पास यशवंत पटेल के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में पंडित कमल किशोर नागर ने व्यास पीठ से कथा की के पांच पांच मे दिन कथा सुनाने आए भक्तों को बताया जहां प्रभु कथा होती है वहां प्रभु के उत्सव होते हैं जहां सच्चे भक्त होते हैं वहां भगवान को आना ही पड़ता है भगवान की कथा अनादि काल से होती चली आ रही है भागवत कथा माता पार्वती के साथ सभी ऋषियों ने भी सुनी हनुमान जी ने भी सुनी वही कथा हमें भी ब्रह्म ज्ञानी गुरु से सुनने को प्राप्त हो रही है रानी दमयंती को कथा से ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ जिसे महर्षि वशिष्ठ एवं उनके शिष्यों को हथप्रद कर दिया था भागवत कथा में केवल भक्तों के चरित्र के गुण को ही भजन के रूप गाना चाहिए पंडित कमल किशोर नागर ने भक्तों को आगे की भागवत कथा सुनाते हुए बताया कि जिससे मनुष्य के जीवन में रस मिले प्रभु की रासलीला का भी तात्पर्य यही है।

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जय घोष करना भी परमात्मा का ही स्वरुप है । श्री कृष्ण के जन्म के बाद नदियों का जलस्तर बढ़ गया विद्यार्थियों का ज्ञान बढ़ गया पृथ्वी हरी भरी हो गई आकाश से बाजे बजने लगी देवता पुष्प वर्षा करने लगे ऋषि मुनि वेद पाठ करने लगे पूरी सृष्टि में ईश्वर कृपा की अनुभूति होने लगी। इसी प्रकार यदि श्रीमद् भागवत कथा में आनंद आने लगे तो समझो प्रभु कृपा बरस रही है जिस घर में अतिथि संत महात्मा के चरण पढ़ते रहते हैं उनका आदर सत्कार होता है उस घर को बैकुंठ के समान समझना चाहिए कथा के पुण्य कभी समाप्त नहीं होते साधारण कर्म से प्राप्त पुण्य जब तक रहते हैं तब तक आप स्वर्ग में निवास कर सकते हैं जैसे ही पुण्य समाप्त होते हैं व्यक्ति को वापस कर दिया जाता है ।

परंतु कथा के पुण्य समाप्त नहीं होते कथा ब्रह्म की है और ब्रह्म कथा एवं स्वर्ग दोनों में रहते हैं ब्रह्म कथा एवं स्वरूप दोनों में रहते हैं कथा के पुण्य स्थायी रहते हैं ।ईश्वर बचपन में सुख मत देता और बुढ़ापे में दुख नहीं देना ध्रुव , प्रह्लाद ने बचपन में दुख भोगा और फिर प्रभु कृपा से सुख ही सुख पाया। मोबाइल मंथरा के समान है जैसे मंथरा ने राजा दशरथ का घर बिगड़ा इसी प्रकार मोबाइल बच्चों के साथ-साथ दांपत्य जीवन भी बिगाड़ रह रहे हैं ।

मूर्ख गलती करे तो करें लेकिन ज्ञानी को गलती नहीं करना चाहिए भीष्म पितामह ने भी द्रोपदी का चीर हरण देखा था उसकी सजा 6 माह तक सरसैया पर पड़े रहना पड़ा महिलाओं को मर्यादाओं का पालन करना चाहिए फटे हुए वस्त्र नहीं पहनकर अंग प्रदर्शन नहीं करना चाहिए पूतना ने एवम स्वयं सीता जी ने मर्यादा की रेखा तोड़ी तो पूतना को मृत्यु और सीता जी को स्वयं के हरण का दुख भोगना पड़ा। कथा में बड़ी संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु कथा सुनने आ रहे हैं।