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आखिर कितने मजदूर  बारूदी ब्लास्ट में हुए भस्म ! कलंकित ब्लास्ट में फेक्ट्री में कार्यरत बचे घायलों से बातचीत! कैसे बनेंगे जर्जर आशियाने,  कहाँ रहेंगे बेघर ? क्या होगा दोषियों का ?  इन्हीं सवालों के कटघरे में खड़ी है व्यवस्था !

गणेश कुशवाह के मकान में दरारें

हरदा । घटनास्थल पर काली राख के ढेर ,  उड़ती चिरायंध के बीच  6 फरवरी ब्लास्ट को एक सप्ताह होने को है। इसमे सिर्फ एक दिन शेष है। अभी मृतकों की आधिकारिक संख्या 13 है वहीं 200 के करीब घायल धीरे धीरे ठीक  होने की स्थिति में है।  यहां गंभीर सवाल यह है कि  जो घायल ब्लास्ट फेक्ट्री  से दूर रहने वाले हैं उनके पास सुरक्षित घर है परिवार है।  लेकिन ब्लास्ट फेक्ट्री के आसपास रहने वाले हताहत व घायल परिवारों के जर्जर आवास उन लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बन गए हैं।  अब यदि जर्जर मकान तोड़े जाते हैं तो  मन की टीस के साथ घायल जिंदा लोग कहाँ  शरण लेंगे।  ये बड़ा सवाल है।  फैक्टरी की इस जगह पर अब किसका कब्जा होगा। सरकार क्या इस जगह पर फिर से  बारूदी कब्जा होने देगी।  बैरागढ़ क्षेत्र जो नपा परिसीमन में आता है तो इन लोगों के लिए नपा क्या मदद के काम कर सकेगी। ये तो समय बताएगा।  बहरहाल, ब्लास्ट से पहले विभिन्न लापरवाहियों की इतनी लंबी फेहरिस्त है कि उसके लिए अलग से जांच बैठ सकती है।  अव्यवस्था का आलम ये था कि व्यवस्था वहां नाममात्र की नहीं थी।  इतना भीषण धमाका कि कई किलोमीटर तक फेक्ट्री की छत के शेष अवशेष मिले। शहर ने पहली बार बारूदी भूकंप को देखा।   खिड़की दरवाजे कांच तक फूट गए। दीवारों में दरारें आ गयीं।

ब्लास्ट के बाद परमार्थ के कार्य करने वाले सभी बंधुओ को साधुवाद ।  ये समय पारमार्थिक रूप से श्रेय लेने का नहीं है। और सियासी आरोप प्रत्यारोप का समय तो बिल्कुल भी नहीं है।

मृतकों के परिजनों के जख्मों पर मरहम और उन्हें आजीवन सम्बल देने का समय है । औपचारिकता निभाने का भी समय कतई नहीं है।

उठ रहे सवाल –

एक साथ सटी तीन फैक्टरियों में 6 फरवरी को  श्रमिकों को साप्ताहिक भुगतान देने की बात भी सामने आई है। अलग अलग तीनों फैक्टरियों में श्रमिकों की  उपस्थिति को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। लापता परिजनों को लेकर भी अभी शिकायतों का विस्तृत लेखा जोखा सामने नहीं आया है। जिससे पता चल सके कि आखिर 6 फरवरी को कितने श्रमिक पहले धमाके के बाद भागने में असफल रहे और भीषण आग का निवाला बन गए ।  ये प्यक्ष प्रश्न है।  वैसे दैनिक रूप से मजदूरी करने जाने वालों ने बताया कि हम 8.30 पर पहुंच गए थे । जिन लोगों को मासिक भुगतान किया जाता है उनके लिए मानपुरा होटल से नाश्ता आया था। नाश्ते के बाद 11 बजे के आसपास  एक धमाका हुआ।  हलचल मची। फिर जो शारीरिक रूप से सक्षम थे, बहुत आसानी से तेजी से भाग सकते थे । वे  भागे भी।  घायल हुए। पर दुर्भाग्य उनका जो टिफिन मोबाइल उठाने के चक्कर मे दुबारा अंदर गए और  बाहर न निकल पाए।
इन फैक्ट्रियों के आसपास मजदूरों के अस्थायी निवास भी बनें हुए थे। यहां इन कमरों में गृहस्थी के सामान भी देखे गए। याब ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि फेक्ट्री और आवास सहित यहां कितने लोग रोजाना इकट्ठे होते थे। बशर से मजदूर आते थे।  मिली जानकारी में महिलाओं के साथ छोटे बच्चे भी साथ आ जाते थे।

कुछ श्रमिक 280 रुपये रोज पर काम पर थे तो, कुछ 350 रुपये रोज के हिसाब से काम करते थे।   अलग अलग फेक्ट्री में अलग काम होते थे। बारूद भरके सुतली से बम बनाना। उनको हरे रंग में रंगना, उनपर रैपर लगाना ,10 बम के पैकेट बनाना आदि काम होते थे। 

घायल श्रमिकों के हिसाब से राजू वाली फेक्ट्री में उस दिन 100 से 150 मजदूर वहां थे। इस फेक्ट्री में भी कुछ ऊपरी  पहली व दूसरी मंजिल पर थे तो कुछ नीचे कक्ष में थे।
श्रमिक से मिली जानकारी के अनुसार इस फेक्ट्री में दामजी पूरा से मुन्ना ठेकेदार श्रमिक लाता था।  मिली जानकारी मुन्ना ठेकेदार  फिलहाल लापता है।

इस घटना का साबसे हृदय विदारक पहलू नन्हे बालक आयुष की मृत्यु हो जाना है। घटना के समय वह खेल रहा था अचानक सबको  भागता देख उसने अपने दिव्यांग पिता को व्हीलचेयर से लेकर भागने की कोशिश की। एक पत्थर उसे सिर व एक पत्थर पीठ में लगा। भोपाल में बसलक की मृत्यु हो गयी थी।

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मकड़ाई एक्सप्रेस ने घटना वाले दिन भागकर  घायल हुए बचे श्रमिकों से बात की । 

रामशंकर शर्मा 65  ने बताया कि 5 सजेल से यहां काम करते थे।  वे सायकल से आते जाते थे। उस दिन  पहले धमाके के बाद वे वहां न रुके और घबराहट और हड़बड़ी में सीमेंट रोड नाले के तरफ भासग निकले । उनकी सायकल का कोई पता नहीं है। उन्हें सिविल लाइन पुलिस ने तीन दिन तक पूछताछ के लिए थाने में रखा। 9 फरवरी को वे घर लौटे ।  उनकी पत्नी उषा शर्मा ने बताया कि हमने तो उम्मीद छोड़ दी थी।  जब ये घायल घर आये तो चैन पड़ीं।  अस्पताल में उनका इलाज न हुआ। फिर वो घर ही रहे। 10 फरवरी को दयोदय गौशाला में डॉ को दिखाया । शर्मा ने  बताया कि मंगलवार को साप्ताहिक हिसाब होता है तो मजदूरों के लिए  सेठ का आदमी रुपये लेकर आया था ।  शर्मा जिस फेक्ट्री में थे उसमें दो मंजिल और बनी हुई थी।

गणेश कुशवाह 63, ये  फेक्ट्री से कुछ दूरी पर रहते हैं। उस दिन भुगतान लेने गए थे। धुंआ उठने और धमाके के बाद तेजी से घर तरफ भागे हाथ पैर में पत्थर लगने से घायल हुए। अभी घर पर आराम कर रहे हैं। घर मे भी धमाके से दरारें आ गयी हैं।  इन्होंने भी कहा कि 150 मजदूर के आसपास रहें होंगे। हालांकि बहुत तेजी से मजदूर निकलकर भाग रहे थे। अंदर कितने रह गए होंगे कोई अंदाजा नहीं है।

■ हरदा से 3-4 किमी दूर उड़ा से भी मजदूर रोजाना आते थे। हरदा से 3 किमी दूर ग्राम उड़ा

◆ अशोक काजले 21  ने बताया कि उसको घुटने में पत्थर लगा । अशोक आयुष की फैक्ट्री में काम करता था।
मुकेश काजले 20 को पीठ में पत्थर लगे । मुकेश राजू अग्रवाल की फैक्ट्री में 2 साल से काम करता था। पहला धमाका सुनके ये तेजी से भाग खड़े हुए। मुकेश का मोबाइल भी अंदर रह गया।  पहले धमाके के बाद हम तो भाग निकले पलट कर भी  नहीं देखा।

◆ ग्राम के ही जितेंद्र परते  25 वर्ष पुत्र जयंत परते ग्राम उड़ा भर्ती है  हमीदिया भोपाल में  भर्ती है। सिर में चोट लगी ।
जितेंद्र के पिता ने बताया कि 50 हजार का चेक मिला है। बेटे जितेंद्र के पास मेरा छोटा लड़का है।  जितेंद्र के छोटे भाई के अनुसार आज छुट्टी हो सकती है।

◆ गांव की अनुसुइया को  राजू सेठ के यहां हरदा घर मे हो रहे पूजा पाठ कार्यक्रम में काम के लिए बुलाने से वो बच गई। अनुसुइया के बुजुर्ग पिता भगवान का धन्यवाद करते हैं ।

◆  जीतू पटवारी की फेसबुक पर अपलोड वीडियो में अस्पताल में भर्ती एक घायल महिला का बयान काबिले गौर है। घायल महिला ने भी उस दिन फेक्ट्री में 150 मजदूर होने की बात को दोहराया है।