भोपाल। राज्यसभा चुनाव को लेकर देश के कई राज्यों में हलचल मची है, लेकिन प्रदेश की कहानी सबसे जुदा है। शुक्रवार को यहां तीन सीटों पर होने वाले चुनाव में संख्या बल के आधार पर भाजपा के खाते में दो और कांग्रेस को एक सीट मिलती नजर आ रही है, लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में दोनों दल सेंधमारी की कोशिश में लगे हैं।
दो सीटों पर जीत के सुनिश्चित आसार दिखने के बावजूद भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर साबित करने के लिए उसके वोटरों पर भी नजर टिका दी है। विधायकों को अपनी निष्ठा प्रमाणित करने की चुनौती है और शुक्रवार को तय हो जाएगा कि कौन दल किसके मोहरे तोड़ने में कामयाब होगा। कांग्रेस के एक-दो विधायकों के लगातार विरोधी सुर ने उन्हें शक के घेरे में ला दिया है। वे विधायक राज्यसभा चुनाव में किस करवट होंगे, यह मतदान के बाद ही पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस को भी अपने मोहरों के खिसकने का खतरा सता रहा है।
शायद यही वजह है कि राज्यसभा में उसने अपने प्रथम वरीयता के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लिए मतों के आवंटन में विधायकों की संख्या बढ़ा दी है। कांग्रेस की एक खास टीम विधायकों के संपर्क पर भी नजर टिकाए है। ऑपरेशन कमल के दौरान कांग्रेस के 22 विधायकों से इस्तीफा दिलवा चुकी भाजपा का यह दावा भी है कि कई कांग्रेसी विधायक पार्टी के संपर्क में हैं। भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने बीते दिनों इस बात का दावा भी किया था। यही वजह है कि कांग्रेस अपने सदस्यों को लेकर ज्यादा सावधानी बरत रही है।
कांग्रेस के लिए एक बड़ा संकट उसके दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह बरैया के पक्ष में लामबंद होते पार्टी के ही कुछ लोग हैं। ये लोग बरैया के अनुसूचित जाति के होने का हवाला देकर राज्यसभा में भेजने की वकालत में जुटे हैं। इससे भी वोटों के खिसकने का खतरा खड़ा हो गया है। मंत्रिमंडल में जगह न मिलने के असंतोष पर कांग्रेस की नजर मंत्रिमंडल में जगह बनाने के लिए भाजपा के कई सदस्य जोर लगाए हैं।
मन की मुराद पूरी न होने से बहुतों के मन में असंतोष भी है। ऐसे लोगों से कांग्रेस ने भी संपर्क साधने की कोशिश की है। गत दिनों कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा ने दावा किया कि मंत्री पद को लेकर उपजे असंतोष का असर राज्यसभा चुनाव पर पड़ेगा।
देखा जाय तो दोनों तरफ क्रॉस वोटिंग का खतरा बना हुआ है। इस खतरे को देखते हुए दोनों दलों ने अपने वोटरों को सहेजने में पूरी ताकत लगा दी है। राजनीतिक पंडितों का दावा है कि वोटरों की दलीय खेमेबंदी का जो आंकड़ा अभी दिख रहा है, वह मतदान के बाद बदल जाएगा। यानी कुछ वोट इधर से उधर जरूर होंगे।