ब्रेकिंग
अजब गजब :कुत्तो के डर से तेंदुआ पेड़ पर चढ़ा:  वन विभाग ने रेस्क्यू किया चिड़िया घर भेजेंगे ऑपरेशन सिंदूर से दुनिया बढ़ेगी भारत की धाक:  आपरेशन सिन्दूर को आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच प... एस.डी.ई.आर.एफ. ने  तहसील कार्यालय रहटगांव में आम नागरिकों को दिया नागरिक सुरक्षा का प्रशिक्षण 2025 में अब बिना लाइन लगाए, घर बैठे करें Ration Card Online Apply, पाएं सस्ता अनाज और ढेरों सरकारी फ... 2025 में घर बैठे बनाएं अपना E Shram Card, पाएं ₹3000 पेंशन और लाखों के फायदे! जानें पूरी प्रक्रिया MP Board 10वीं-12वीं वालों के लिए सुनहरा मौका फेल या कम नंबर? अब दोबारा परीक्षा दें! MP Board Second... पाकिस्तान के मित्र तुर्की से भारतीयो ने की अपनी डील की कैन्सिल! व्यापारियो और पर्यटकों ने किया किनार... हरदा: नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, आज रहटगांव में होगा कार्यकम, Aaj ka rashifal: आज दिनांक 16 मई 2025 का राशिफल, जानिए आज क्या कहते है आपके भाग्य के सितारे Ladli bahna: मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने लाडली बहनों के खाते में राशि अंतरित की

एक ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालुओं की मुराद चोरी करने से पूरी होती,चूढ़ामणि देवी के आर्शीवाद से निःसंतान को मिलती संतान

देहरादून | उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यह देवो की भूमी है और यहां कई मंदिर हैं,रोजाना यंहा लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। श्रद्धालु यहां हरिद्वार, रुड़की, ऋषिकेश आदि जैसे शहरों में मौजूद मंदिरों के दर्शन करने आते हैँ।यहां के रुड़की के चुडि़याला गांव में एक ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालुओं की मुराद चोरी करने से पूरी हो जाती है। ये मंदिर चूड़ामणि देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।

चूड़ामणि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों-लाखों में होती है। हालांकि, यहां ज्यादातर नि:संतान दंपत्ति ही आते हैँ।श्रद्धालु यहां दर्शन करके चूड़ामणि देवी के पैरों में पड़ा लकड़ी का गुड्डा चोरी करके ले जाते हैँ। वे किसी से यह बात नहीं बताते हैँ। ऐसी मान्यता है कि जब नि:संतान दंपत्ति की संतान पैदा हो जाती है तो वे मंदिर में दोबारा वापस जाकर दान-पुण्य करते हैँ।

- Install Android App -

जिन्हें पुत्र की चाह होती है वह जोड़ा यदि मंदिर में आकर माता के चरणों से लोकड़ा (लकड़ी का गुड्डा) चोरी करके अपने साथ ले जाए तो बेटा होता है। उसके बाद बेटे के साथ माता-पिता को यहां माथा टेकने आना होता है। कहा जाता है कि पुत्र होने पर भंडारा कराने के साथ ही दंपति अषाढ़ माह में ले जाए हुए लोकड़े के साथ ही एक अन्य लोकड़ा भी अपने पुत्र के हाथों से चढ़ावाना नहीं भूलते। गांव के लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने करवाया था।

पुराने जानकार बताते है की माता की पिंडी पर रोजाना शेर भी मत्था टेकने आते थे।माता चूड़ामणि के अटूट भक्त रहे बाबा बनखंडी का भी मंदिर परिसर में समाधि स्थल है।  बताया जाता है की बाबा बनखंडी महान भक्त एवं संत हुए है।  इन्होने यही 1909 में समाधी ली थी।