झूमते पेड़, पौधों की खूबसूरती के साथ पक्षियों के कलरव से गूंजे शहर –मिश्रा
धार मनावर से पवन प्रजापत
मनावर/एक समय था जब हमारे गांव, शहर पेड़-पौधों की हरियाली से आच्छादित होकर सुबह-शाम आसमान में उड़ते पक्षियों और दिनभर इन पक्षियों की चहल-पहल के साथ गुंजित रहते थे। समय और विकास की गति बढ़ने के साथ जहां पेड़ पौधों की संख्या तेजी से घटी है, वही पक्षियों का कलरव भी धीरे-धीरे कम होकर लुप्तप्राय सा होता चला गया।
मनावर के साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता विश्वदीप मिश्रा बताते हैं कि मेरे बगीचे में लगे नींबू के पेड़ पर 4 — 6 गोरैया आकर रहने लगी। उनकी चहचहाट सुनकर और उन्हें फुदकते देखकर मेरा मन प्रसन्न हो जाता था । उनके लिए दाल, चावल, रोटी के टुकड़े व पानी आदि की व्यवस्था करने लगा।धीरे-धीरे इन गौरैया की संख्या बढ़ती चली गई। अब इस पेड़ पर सैकड़ों गोरैया आकर बस गई। इन गौरैयाओ के लिए मेरे द्वारा दाना ,पानी की अनवरत व्यवस्था जारी रखी गई ।फिलहाल करीब 7 से 8 किलो चावल महीने भर में इन गौरैयाओ को लग जाता हैं। इनकी चहचहाहट से घर ,आंगन गुंजित रहता है ।हालांकि निबू के फूल बहुत नाजुक होते हैं। जिससे इनके उड़ने व बैठने की क्रिया में यह फूल टूट कर गिर जाते हैं। जिससे नींबू लगने की मात्रा थोड़ी कम हो गई है ।लेकिन गौरैयाओ के संरक्षण के साथ-साथ भोजन ,पानी देने का सिलसिला लगातार चल रहा है।
हम सभी को चाहिए कि हम अधिक से अधिक वृक्ष लगाने के साथ ऐसे पक्षियों को भी संरक्षण प्रदान करे एवं इनके भोजन, पानी की व्यवस्था करें। इससे हमें इन पक्षियों की दुआ मिलने के साथ-साथ मन को शांति तो मिलती है साथ ही हम हमारे आसपास के परिवेश और प्रकृति को हरियाली से आच्छादित कर सकते हैं और शहरों, गांव से लुप्त होते इन पक्षियों की संख्या बढ़कर आसमान पुनः इनकी आवाज से चहचहा सकता है। आओ हम सब मिलकर करें ऐसा प्रयास।