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बैकुंठ चतुर्दशी: क्यों इस दिन भगवान शंकर से पहले होती है श्रीहरि की पूजा

आज यानि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म के अनुसार शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन नदी, सरोवर या तालाब के किनारे 14 दीपक जलाए जाते हैं। जैसे कि सब जानते हैं कि कार्तिक मास का ये माह भगवान विष्णु को समर्पित होता है, इसीलिए ये महीना विष्णु जी को बेहद प्रिय है। लगभग सभी लोग इस दिन नदी या किसी सरोवर के किनारे पर 14 दीए जलाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं  आखिर इसके पीछे का पौराणिक कारण क्या है। अगर नहीं तो आइए आज हम आपको बताते इस मान्यता के पीछे का असल कारण-

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दीपक जलाने के पीछे का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता की मानें तो एक बार श्री हरि काशी में भगवान शंकर का पूजन करने पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। परंतु जब उन्होंने पूजन शुरु किया तो महादेव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए उन 1, 000 स्वर्ण पुष्पों में से एक कमल पुष्प कम कर दिया। जब विष्णु जी देखा कि एक कमल पुष्प कम है तो  उन्हें अचानक ये ख्याल आया कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी ही हैं क्यों न मैं अफनी अपनी एक आंख शंकर को प्रस्तुत कर दूं। ये विचार करते समय श्रीहरि भगवान शंकर को अपनी अांख अर्पित करने लगे तो महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है।

इसीलिए आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब ‘बैकुंठ चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाएगी। जो भी मनुष्य इस दिन भक्तिपूर्वक आपका पूजन करेगा, वह बैकुंठ को प्राप्त होगा। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य इस दिन 1,000 कमल पुष्पों से भगवान विष्णु के बाद भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता है, वे सभी बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। कुछ अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ही शिव जी ने श्रीहरि विष्णु को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया था। ज्योतिष में कहा गया है कि इस दिन व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी आदि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा मनाई जाती है।