मकड़ाई एक्सप्रेस 24 बुरहानपुर | भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर मनवांछित वर प्राप्त करने का सरल माध्यम श्रावण मास को माना जाता है। ऐसे में प्राचीन और जागृत शिवालयों का महत्व बढ़ जाता है। बुरहानपुर जिले में सैकड़ों साल पुराना एक ऐसा शिवालय मौजूद है, जिसे लेकर कई किवदंतियां सुनी जाती हैं। जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर सतपुड़ा की पहाड़ी पर स्थित असीरगढ़ किले में मौजूद शिव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां आज भी गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भगवान शिव का पूजन करने आते हैं।
सुबह मंदिर के पट खुलने से पहले ही वे ब्रह्म मुहूर्त में शिव जी का पूजन कर चले जाते हैं। किले के कर्मचारी जब मंदिर के द्वार खोलते हैं तो शिवलिंग पर बेलपत्र और पुष्प चढ़े मिलते हैं। इतिहासकार और संत समाज का मानना है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है। जिससे अश्वत्थामा की आस्था जुड़ी हुई है। पवित्र श्रावण मास में बड़ी संख्या में महादेव के भक्त कांवड़ में सूर्यपुत्री मां ताप्ती का जल भर कर यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।सुबह मंदिर के पट खुलने से पहले ही वे ब्रह्म मुहूर्त में शिव जी का पूजन कर चले जाते हैं। किले के कर्मचारी जब मंदिर के द्वार खोलते हैं तो शिवलिंग पर बेलपत्र और पुष्प चढ़े मिलते हैं। इतिहासकार और संत समाज का मानना है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है। जिससे अश्वत्थामा की आस्था जुड़ी हुई है। पवित्र श्रावण मास में बड़ी संख्या में महादेव के भक्त कांवड़ में सूर्यपुत्री मां ताप्ती का जल भर कर यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।