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पत्रकारों की अधिमान्यता पर सीधी कार्रवाई अब नहीं होगी संभव:  एफआईआर के आधार पर अधिमान्यता रद्द करने से पहले सुनवाई अनिवार्य — जबलपुर हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

बैतूल / जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी पत्रकार के विरुद्ध एफआईआर दर्ज होने या आपराधिक प्रकरण लंबित होने मात्र से उसकी अधिमान्यता निरस्त नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने यह आदेश बैतूल के 60 वर्षीय नि:शक्त वरिष्ठ पत्रकार रामकिशोर दयाराम पंवार की याचिका पर सुनाते हुए जनसंपर्क विभाग द्वारा अधिमान्यता निरस्त करने के आदेश को निरस्त कर दिया।

 

न्यायमूर्ति विशाल धगत की एकल पीठ ने 15 अक्टूबर 2024 को स्पष्ट किया कि अधिमान्यता समाप्त करने से पूर्व नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अंतर्गत पत्रकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। अदालत ने कहा कि जनसंपर्क विभाग का आदेश एक “नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर” था, जिसमें याचिकाकर्ता को पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया।

 

महत्वपूर्ण तथ्य:

पत्रकार रामकिशोर पंवार की अधिमान्यता पुलिस अधीक्षक बैतूल और कलेक्टर बैतूल की अनुशंसा पर रद्द की गई थी।

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुशील तिवारी ने दलील दी कि यह आदेश नियमविरुद्ध और नैसर्गिक न्याय के विपरीत है।

 

अदालत ने अतिरिक्त संचालक जनसंपर्क को नया कारण बताओ नोटिस जारी कर सुनवाई की प्रक्रिया अपनाने के निर्देश दिए।

फैसले का व्यापक प्रभाव:

इस निर्णय के बाद अब मध्यप्रदेश में किसी भी पत्रकार की अधिमान्यता एफआईआर या आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर सीधे रद्द नहीं की जा सकेगी। पहले उसे नोटिस देकर, उसका पक्ष जानना आवश्यक होगा। यह फैसला प्रदेश के सभी पत्रकारों के लिए कानूनी सुरक्षा का एक मजबूत उदाहरण बनकर सामने आया है।