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Post card: व्हाट्सएप के जमाने में ‘पोस्ट डेटेड’ हुआ पोस्ट कार्ड, 1879 में आज ही के दिन हुई थी भारत में शुरुआत

आज के आधुनिकतम युग के कुछ लोगो को अनदेखा करते हुवे गहरी दृष्टि घुमाते है तो साथियो पोस्टकार्ड के नाम से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। लगभग १45 वर्ष पूर्व आरंभ हुए सफर से आज की आधुनिकतम युग मे भी इसका हमारे बीच होना इसकी महत्ता को दर्शाता है। पहले की अपेक्षा अधिक तेजी से दौड़ती-भागती जीवन शैली में अत्याधुनिक संचार प्रणाली इंटरनेट के आ जाने से सूचना, संदेश, हाल-चाल पाने की गति पांच गुना हो गई। संदेश को भेजने ओर पाने में व्हाट्सएप, ईमेल, ट्वीटर, एसएमएस, फेसबुक, चैट मेसेंजर, वीडियो कॉलिंग आदि की भूमिका प्रमुख हो गई है, किन्तु एक दौर था कि लोग शांति से बैठ तोल-मोल कर आपने गूढ़ प्रभावी शब्दो को प्रेम अपनत्व में भीगी स्याही से पोस्ट कार्ड पर लिख कर अपने प्रियजनों को भेजने हेतु डाक घर के लाल डब्बो में बड़े विश्वास से डाल आते थे और न जाने कितने घरो में बड़ी अधीरता से पोस्टकार्ड की बांट जो ही जाती थी।

सेकड़ो परिवारों की खुशियां, प्रेम, स्नेह ओर सुख-दुख का वाहक रहा है पोस्टकार्ड। कई बार तो अपने आंगन में आए डाकिया के हाथों में पोस्टकार्ड देखकर ही घर के लोग खुशी झूम जाते थे तो कभी फुट-फुट, फफक-फफक, रो पड़ते थे, जानते हो ऐसा क्यों ?

क्योंकि कुमकुम रोली के छीटे लगा कार्ड खुशियों का मंगल सूचना का ओर कार्ड का व कोना फटा, कटा कार्ड प्रियजन के दिवंगत की दु:खद सूचना का घोतक होता है।

आयताकार मोटे गत्ते के टुकड़े के अलावा लकड़ी, ताम्बा, कपड़ा, नारियल, चमड़े आदि से निर्मित भांति-भांति के पोस्टकार्ड चलन हुआ था। कहना अतिशयोक्ति नही होगा कि पोस्टकार्ड ने जैसा देश जैसा शाशक वैसा भेष अपनाया, रंग रूप आकर बदलते हमारे पोस्टकार्ड की सुंदरता और अविस्मरणीय यात्रा को अस्तित्व में लाने का विचार सर्वप्रथम आस्ट्रिया प्रतिनिधि कोल्बेस्टिनर के मानसपटल पर 1 जुलाई 1869 को आया था।

इस बारे में उन्होंने विनरन्योंस्टा में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र प्रोफेसर डॉ. एमेनुएल ह्यूमेन को बताया, उन्हें भी यह विचार अत्यधिक रोचक लगा और 26 जनवरी 1869 को स्थानीय समाचार पत्र में इस संबंधी लेख लिखा।

आस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस पर त्वरित कार्यवाही की ओर पोस्टकार्ड की पहली प्रति 1 अक्टूबर 1869 में जारी की गई तथा यहीं से पोस्टकार्ड की सुखद रोमांचक यात्रा आरंम्भ हुई जिसे विश्व ने हाथो-हाथ अपना लिया।

पोस्टकार्ड का जितना सीमित आकार आज दिखता है उससे कहीं अधिक गुना इसकी कहानी है। प्रत्येक देश के साथ उसकी अपनी कहानी है इसे गूगल पर पोस्टकार्ड विकिपीडिया आदि संबंधी विषयों से जाना जा सकता है ।

हम अपने भारत वर्ष की बात करे तो 1 जुलाई 1879 के वह प्यारा सा दिन था जब पोस्ट कार्ड का चलन हमारे देश मे हुआ, यूं तो पहला पोस्टकार्ड पिले रंग का था किंतु भारत मे इसका नवीन रूप हल्के भूरे रंग का हुवा करता था। जिसपर ईस्ट इंडिया छपा था बीच मे ग्रेट ब्रिटेन का राज चिन्ह मुद्रित था। ऊपर की तरफ दोनो कोनो में लाल भूरे रंग से ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया की मुखाकृति छपी थी। बाद में पोस्टकार्ड में बहुत बदलाव आते रहे किन्तु इसके पसंद करने वालो की कमी नही रही जब किसी अपने संबंधी को डाक शुल्क के भार से मुक्त रखते हुए उत्तर प्राप्त करना होता था तो कार्ड के साथ अपना पता लिखा जुड़वा जवाबी कार्ड भेजा जाता था। प्राय: इसका मूल्य पोस्टकार्ड से दुगना होता था।

भारत मे मात्र 3 पैसे के दाम वाला पोस्टकार्ड 145 वर्ष की बहुत लंबी यात्रा के बाद भी सामान्य मूल्य 50 पैसे है।  

14 सेंटीमीटर लम्बा ओर 9 सेंटीमीटर चौड़ाई वाले तीन प्रकार के पोस्ट कार्ड की जानकारी हमें भारतीय डाक सेवा की वेबसाइट पर सर्च करने से उपलब्ध होती है।

एक-सामान्य पोस्टकार्ड, दूसरा-प्रिंटेड पोस्टकार्ड , तीसरा – मेघदूत पोस्ट कार्ड ।

हमारे देश मे आज भी आम जनमानस कोई विशेष मांग आदि हेतु, सरकार या प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति जी को पोस्टकार्ड लिख अपनी मनुहार करते है, जनसमर्थन देते है। विश्व का एक मात्र सबसे विशाल परिवार रेडियो श्रोताओ का है जो आज भी पोस्टकार्ड का उपयोग अपनी पसंद के कार्यक्रमों में गीत सुनवाने का अनुरोध करते है तो अच्छे कार्यक्रमों की प्रशंसा, समीक्षा, सुझाव ओर शिकायत के रूप में पोस्टकार्ड का अनिवार्यता से उपयोग करते है पत्र लिखते है।

आपको जानकर खुशी होगी कि पोस्टकार्ड के अध्ययन, संग्रहण की विद्या को आज डेल्टी योलॉजी कहा जाता है।

पोस्टकार्ड के उलाहने, किस्से, कहानियां आज भी मन को भाव विभोर कर देते है। अरे भाई दस पैसे का कार्ड ही लिख भेजते या फिर विवाह पश्चात दूर गांव शहर की बेटी को जब अपनी माँ का लिखवाया कार्ड मिलता था तो उसे यूं लगता था मानो कार्ड में माँ समाई हुई है। अनपढ़ माँ न जाने किस किस से मनुहार कर कार्ड लिखवाती थी तो वही बेटी के ससुराल से आया कार्ड छोटे भाई बहन ओर माँ के लिए अनमोल हुवा करता था। पोस्टकार्ड को माताये अपनी छाती से यंू लगा लेती थी मानो उसमे बेटी समाई हुई है।

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अपनो के दिवंगत हो जाने का समाचार कार्ड ने सदैव देरी से ही पहुंचाया, इस कार्ड का कोना फटा होता था और इसे कभी भी घर मे प्रवेश नही मिलता। वंही पोस्टकार्ड प्रेमियो के हाथ कभी चढ़ा ही नही किन्तु दोस्ती का दामन सदैव थामे रखा। लाखो लाख किस्से इससे जुड़े है भारतीय फिल्मों में भी डाकिया, प्रेम पाती, खत आदि से भरपूर गीत है जो इसके होने का एहसास कराते है।

समय के साथ बदलना आवश्यक है किंतु अपने मे भी बदलाव ला कर अपना अस्तित्व बचाए रखना महत्वपूर्ण है। आज भारतीय पोस्टकार्ड के 145 वे जन्मदिवस पर इसको पसंद करने वालो के साथ आप सभी को हार्दिक बधाई, मंगल कामनाएं।

अत्याधुनिक तीव्र गामी त्वरित उत्तर प्राप्ति वाले इंटरनेट सेवाओ के चलते पोस्टकार्ड का चलन बहुत कम हो गया (इसके साथ पत्र लेखन की विधा भी अस्ताचल की ओर मुड़ गई है) और पोस्टकार्ड अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है किंतु इस बात में कोई संशय नही की अंदाज़ – ऐ – बयां का यह सबसे सस्ता, सरल , सुलभ सुखद माध्यम है।

अपने जीवन मे सुखद अनुभूति पाने पोस्टकार्ड लेखन को स्मृति में अंकित करने की तनिक भी इच्छा है तो आज भी उपलब्ध है पोस्टकार्ड ।

लिख भेजिए संगे संबंधी मित्र बेटे बेटियों को अपनी पत्नी को ओर कोई नही तो स्वयं को भी लिख सकते है। 

प्रशासन में शासकीय विभाग में प्रधानमंत्री राष्ट्रपति आदि को भी लिख सकते है। सुखद लगेगा गर्व भी होगा कि हमने पोस्टकार्ड का उपयोग किया है। आप मुझे भी तो लिख सकते है।

लेखक मनीष घनश्याम निमाड़े

235 तिलक पथ खरगोन 

 

451001 मप्र।

 

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