झाबुआ योगेश चौहान*
आदिवासी आदिम संस्कृति प्राचिन परंपरा अनुसार झाबुआ जिले के कल्याणपुरा गांव में ज्वारा बोया गया था जिसका आज धूम धाम से विसर्जन हुआ । विसर्जन अयोजन बड़े स्तर पर सम्पन्न हुआ जिसमे झाबुआ अलीराजपुर सांसद गुमान सिंह डामोर, जिला उपा अध्य्क्ष भानू भुरिया झाबुआ जनपत अध्यक्ष हरु भुरिया,हिन्दू युवा जनजाति सगठन ब्लाक अध्यक्ष अनिल वसुनिया, के साथ ही कई कार्यक्रता व समस्त आदिवासी समाज एकत्रित हुआ ।
*ज्वारा प्रति वर्ष बोया जाता है*
ज्वारा प्रति वर्ष आदिवासी बहुल क्षेत्र में बोया जाता है । झाबुआ जिले में हर क्षेत्र में ज्वारा बोया जाता है । ज्वारा गेहूं के पोधो को एक कलस के अंदर व जमीन पर विधि विधान आदिवासी गीत गायन के साथ दारू की धार के साथ ग्रामीण पूर्वज ग्रामीण बडवे द्वारा बोया जाता है ।
आदिवासी गायन गरबा भी ज्वारे में होता हे
आदिवासी समाज में ज्वारे बोने के बाद 9 दिन तक उस स्थान पर विधि विधान से पूजन की जाती है महूवे के दारू की ग्रामीण बडवे बुजुर्ग द्वारा धार दी जाती है पारंपरिक गीत गरबा खेला जाता है आदिवासी गायन होता हे
मुर्गे व बकरे की दी जाती है बली
ज्वारे बोने के बाद नो दिन तक गायन बडवे द्वारा बली धूप ध्यान किया जाता है मुर्गे व बकरे की बली दी जाती है उसके बाद प्रसाद वितरण की जाती है यह प्रति वर्ष दीपावली के आस पास किया जाता है ।
9 दिन पूजन 11 वे दिन विसर्जन
*ज्वारे बोने के बाद 9 दिन तक पूजन की जाती है 10 दिन ज्वारे ठंडे किए जाते हे उसके बाद ग्यारवे दिन धूम धाम से होता हे विसर्जन विसर्जन में समस्त ग्रामीण जन शामिल होते हे जो की ढोल के थाप के साथ ही नजदीक नदी में ज्वारे विसर्जन किए जाते हे*
*आयोजन का मुख्य कारण*
*यह प्रथा आदिवासी समाज में प्राचीन वक्त से चली आ रही हे इस प्रथा को आदिवासी समाज वर्षो से निभाते आ रहा हे आदिवासी समाज में यह मान्यता हे की इस आयोजन से आने वाली समस्याओं का उल्लेख किया जाता है खेत में फसल किस प्रकार की होगी बारिश पिछले वर्ष से इस वर्ष अधिक होगी या कम केसा होगा आने वाला वर्ष आदि कई भविष्यवाणी बुजुर्ग बडवे द्वारा की जाती है ।
राणापुर से कल्याणपुरा पहुंचे जिला उपा अध्य्क्ष भानू भुरिया
क्ल्यानपुरा में बाबा मकना मंदिर पर ज्वारा कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमे झाबूआ जिला उपा अध्य्क्ष भानू भुरिया अपने समर्थकों के साथ इस आयोजन में पहुंचे जहा पर भानू भुरिया द्वारा ज्वारा कार्यक्रम में सम्मिलित होकर उत्साहित रूप से ढोलकी बजाकर खुशी जाहिर की ढोलकी बजाने का आदिवासी समाज में यह हे की ढोलकी बजाने से ग्रामीण जनों को ढोलकी की आवाज से निमंत्रण पहुंचता है ढोलकी के संकेत से ग्रामीण समझ जाते हे की ज्वारा विसर्जन का वक्त हो गया हे । ढोलकी की आवाज से ग्रामीण जन जुटना शुरू हो जाते हे उसके बाद फिर सभी मिलकर ज्वारा विसर्जन को जाते हे