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अमेरिकी कंपनियों में शीर्ष पद पर गिनती की महिलाएं, ‘मी टू’ से और बिगड़े हालात

न्यूयॉर्कः अमेरिका में ‘मी टू’ अभियान की वजह से देश की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बेशक इस वर्ष को राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के वर्ष के रूप में बताया जा रहा है लेकिन कारोबारी दुनिया में महिला बॉस की गिनती  बहुत कम है। कुछ लोग यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि यह स्थिति सुधरने वाली नहीं है, क्योंकि ‘मी टू’ अभियान के इस दौर में पुरुष बॉस अपनी युवा महिला सहकर्मी के मार्गदर्शक की भूमिका नहीं निभाना चाहते हैं। ‘मी टू’ अभियान ने यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर अनुचित व्यवहार को लेकर जागरूकता काफी बढ़ा दी है। कुछ समय पहले पेप्सिको की प्रमुख इंद्रा नूई ने पद छोड़ने की घोषणा की थी। इस घोषणा से शीर्ष पदों पर महिलाओं की संख्या में गिरावट के ट्रेंड की मजबूती के ही प्रमाण और पुख्ता हुए हैं। विडंबना यह है कि ऐसी स्थिति उस दौर में है, जब कार्यस्थल पर समानता की चर्चा जोरों पर है और शीर्ष पदों तक पहुंचने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

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हाल में अनेक महिलाओं ने कंपनी प्रमुख का पद छोड़ा है। इनमें कैंपबेल सूप की डेनिस मॉरिसन, मेटल की मार्गो जॉर्जियाडिस, एवॉन की शेरिलिन मैककॉय, हैवलेट पैकार्ड की मेग व्हिटमैन, जेरॉक्स की उर्सुला ब‌र्न्स और ड्यूपोंट की एलेन बुलमैन जैसी दिग्गज महिलाएं शामिल हैं। इन सभी की जगह पुरुष ने ली। यह विविधता के प्रयासों पर एक बड़ा झटका है। अभी एसएंडपी 500 में शामिल कंपनियों में से पांच फीसदी से भी कम की प्रमुख महिला हैं। यह अनुपात 2017 में 5.4 फीसदी था।

वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के लिए वकालत करने वाले एनजीओ कैटालिस्ट्स की प्रमुख लॉरेन हैरिटन ने कहा कि हम उल्टी दिशा में बढ़ रहे हैं। निचले पदों पर महिलाओं ने सफलतापूर्वक प्रवेश कर लिया है और वे मध्य प्रबंधन स्तर तक भी पहुंच गई हैं। इसके बाद यह विकास रुक गया है। खासतौर पर अश्वेत महिलाएं शीर्ष पदों पर नहीं पहुंच पा रही हैं। विशेषज्ञ इस बात को खारिज करते हैं कि कैरियर की तुलना में परिवार पर अधिक ध्यान देने के फैसले के कारण महिलाएं शीर्ष पदों पर नहीं पहुंच रहीं।